गुलशने हिन्द इस नामकी एक पुस्तक हमारे पास समालोचनाके लिये आई है। इसमें उर्दू के प्रसिद्ध कवियोंकी संक्षिप्त जीवनियां लिखी गई हैं। इसके लेखक मिरजाअली लुत्फ थे। उन्होंने यह पुस्तक सन् १८०१ ईस्वीमें जान गिलक्राइस्ट साहबकी आज्ञासे लिखी थी और अब १०५ वर्प पीछे लाहोरमें छपकर हैदराबाद दक्षिणसे प्रकाशित हुई है। इस पुस्तकके मिलनेको घटना बड़ी विचित्र है। पांच वर्ष हुए हैदराबाद (दक्षिण) की नदीमें बाढ़ आई, इससे लाखों रुपयेकी हानि हुई। किसी बेचारेका पुस्तकालय बह गया था। उसकी पुस्तक लोगोंने पानीमेंसे निकाली और कौड़ियोंके मोल बेच डाली। उन्हींमें यह पुस्तक भी थी। जिन सज्जनोंको यह पुस्तक मिली, उन्होंने मौलवी शिबलीको दिखाई। शिब्ली साहबने इसे बहुत पसन्द किया और स्वयं इसका सम्पादन किया । जहाँ कुछ भूल देखी ठीक कर दी और इस पर कुछ नोट भी लिख दिये। मौलवी अब्दुलहक बी० ए० मदरसये आसिफियाके प्रिन्सपल हैं। उन्होंने इस पुस्तक पर एक बहुतही उत्तम भूमिका लिखी है। उससे इसकी बहुत कुछ आबरू बढ़ गई है। हम इस पुस्तक पर आलोचना करनेसे पहले कुछ बातें मौलवी अब्दुलहककी भूमिकासे लिखते हैं, जिनका जानना हिन्दीके पाठकोंके लिये भी बहुत आवश्यक है। पटना- निवासी अली इब्राहीम खांने १२ वर्षके परिश्रमसे सन १७८४ ईस्वी में उर्दू कवियोंकी एक जीवनी तैयार की थी। उसक नाम था 'गुलजारे इब्राहीम।' यह पुस्तक फारसीमें थी। उस उर्दूवाली पुस्तककी नींव, उसी फारसीवाली पुस्तकसे पड़ी, पर यह एकदम उसका अनुवाद नहीं है। अनुवादकाने इसमें बहुत-सी बातें बढ़ाई हैं, जिससे यह एक नई पुस्तक बन गई है । [ ५७१ ]
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