गुप्त-निबन्धावली आलोचना-प्रत्यालोचना जब यह पुस्तक बनी, उस समय दिल्ली में शाहआलम और लखनऊमें नवाब सआदतअली खांका शासन था। दिल्ली उजाड हो चली थी, पर लखनऊ आबाद था। दिल्लीके कवि लखनऊमें एकत्र होते जाते थे। उर्दू कविताकी उन्नतिका यही समय था। पर अवनतिका भी था। कारण यह कि एक ओर तो यह भाषा स्वच्छ होती जाती थी और दूसरी ओर फारसी वालोंके अनुकरणसे इसकी उन्नतिका मैदान सङ्कीर्ण होता जाता था। कवि लोग कविता उर्दू में करते थे, पर चिट्ठी-पत्री फारसीमें चलती थी। उनकी कविताकी पुस्तक उर्दूमें होती थी, पर वह भूमिका उसकी फारसीमें लिखते थे। बीचमें कोई नोट करना होता था, तो वह भी फारसीमें। हकीमजीसे नुस्खा लिखवाइये तो वह भी फारसीमें लिखते हैं। सरकारी दफ्तरोंमें भी फारसी थी, इससे उर्दू जरा आगे नहीं बढ़ सकती थी। १६ वीं शताब्दिके आरम्भमें डाकर जान गिलक्राईस्टने फोर्ट विलियम कलकत्तमें पुस्तकोंके लिये एक विभाग बनाया। उससे साहबका मतलब यह था कि जो अङ्गरेज भारतमें नौकरी करते हैं ; उनकी शिक्षाके लिये उसमें उर्दूकी पुस्तकें तैयार कराई जाव। जिस प्रकार राजा टोडरमलकी चेष्टासे अकबरके दफ्तरोंमें फारसी जारी हुई थी, उसी प्रकार जान गिलक्राइस्टकी चेष्टासे उर्दूने अंगरेजी दफ्तरोंमें स्थान पाया। जान गिलकाइस्टने उर्दू में बहुत-सी पुस्तक लिखवाई। गद्य-उर्दुका लिखा जाना उसी समयसे आरभ्भ हुआ। ___ फोर्ट विलियम कालिजमें जो पुस्तक लिखी गई, उनमेंसे प्रसिद्धका वर्णन इस प्रकार है- सैयद मुहम्मद हैदरबख्श हैदरीने सन १८०१ ईस्वीमें तोता कहानी लिखी। मूल पुस्तक संस्कृतमें थी। इबनिशातीने उसे दक्षिणी भाषामें लिखा था। दक्षिणीसे वह फिर उर्दूमें लिखी गई। हातिमकी कहानी [ ५७२ ]
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