पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६०

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योगेन्द्रचन्द्र बसु मायू योगेन्द्रचन्द्र बमु एक कुलीन कायम्थ-कुलमें पैदा हुए थे । उनका || जन्म बर्दवान जिलेके बेड़ग्राम, नामक एक छोटेसे ग्राममें हुआ। उनकी उमर पचास मालसे कुछ कम थी। कलकत्त में वह ग्वाली हाथ आये थे, और यहाँ आकर अपने बुद्धिबल और अपनीही चेष्टासे एक नामी अखबारवाले बने। कलकत्तमें जो इस समय कितनेही बहुत लम्बे चौड़ बङ्गला और हिन्दीक अखबार दिग्वाई देते हैं, इनके आदि पथ-प्रदर्शक बाबू योगेन्द्रचन्द्रही थे । लार्ड लिटनने प्रेम एक्ट जारी करके भारतक देशी भाषा- ओंके पत्रोंका गला घोंटा था। लार्ड रिपनने आकर उनको स्वाधीनता दी और तीन तोलेके अग्रवारोंका डाक महसूल एक पंसा किया। उस ममय बंगालमें कई एक बंगला अखबार निकलते थे. जिनमेंसे 'मोमप्रकाश' और 'महचर' प्रधान थे । लार्ड रिपनकी डाक महसूल कम करनेकी आज्ञासे क्योंकर लाभ उठाया जाय, यह बात किसीकी ममझमें न आई । योगेन्द्र- बाबूकी उमर उस समय केवल २५ सालकी थी । उम तीब्र-बुद्धि युवाने उम आज्ञासे लाभ उठाना चाहा। उसने एक बड़े कागजपर 'बंगवामी' नामका एक बंगला साप्ताहिक अग्वबार नवम्बर मन १८८० ई० में जारी किया । उमका वार्षिक मूल्य डाक व्यय सहित दो रुपये और एक संख्याका मूल्य दो पैसे रखा । इस मस्तापनको देखकर उस ममयके लोग हैरान रहगये । वह समझे कि जल्द यह पत्र बन्द होजायगा और मालिक दिवाला निकाल कर भागेगा, पर बात औरही हुई। एकही मालमें बङ्गाल भग्में बंगवासीकी धूम पड़ गई। सब अखबार उससे पीछे रह गये । बंगवासीकी देखा देखी ‘सञ्जीवनी' निकली। 'समय' निकला । 'हितवादी' 'वसुमती' भी उमीके देवा देवी निकले। यह सब लगभग