पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६०२

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देव-देवी स्तुति हाथ जोर यक बात आज पूछ तुम पाहीं । अब हूं हे प्रभु ! राज तुम्हारो है वा नाहीं ।। सुन्यो दिव्य तव राज, दिव्य लोचन कहं पावें । जासों वह सुख अनुभव करि आनन्द मनावै ।। आप दयाकर राज आपनो देहु दिखाई। हम तो आंधर भये हमें रघुनाथ दुहाई ।। तुमहिं करो प्रभु दया तुमहिं जासो हम जानहिं । गुणस्वरूप तुम्हरो अपने उर अन्तर आनहिं ।। सुन्यो तुम्हारो राज हतो दुखहीन सदाहीं । दीन दुखो वामें ढूंढेहू मिलते नाहीं ।। अङ्गहीन तन-छीन रोग सोकनके मारे। कबहु न कोऊ सुने राम प्रभु राज तुम्हारे ।। और सुनी हम राज तुम्हारे भयो न कोई। अन्नहीन जलहीन प्राण त्याग्यो जिन होई ।। पूत पिताक आगे काहको नहिं मरतो। राज तुम्हारे पुत्रसोक कोऊ नहि करतो ।। और सुनी हम चोर जार लम्पट अन्याई । सके न कबहूं रामराजके निकटहुँ जाई ।। कबहुं न पस्यो अकाल मरी कवहूं नहिं आई । अन्नहीन तृनहीन भूमि नहिं दई दिखाई ।। वायु बह्यो अनुकूल इन्द्र बहु जल बरसायो । सुखी रहे सब लोग रह्यो नित आनंद छायो । धम्म कम्म अरु वेद गाय बिप्रनको आदर । रह्यो तुम्हारे राज सदा प्रभु सब बिधि सुन्दर ।। पै हमरे नहिं धर्म कर्म कुल कानि बड़ाई ।