पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६३६

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देव-देवी स्तुति बेगि उबारो मात नतर हम जात रसातल । इक तव नाम अधार छाड़ि कछ रह्यौ न सम्बल ।। अब कोई नाहिन कर गहत, सुनहु मात असरन सरन । अस दया करहु मा, छाड़ि सब, सेवें इक तुम्हरे चरन ।। बारेक नयन उघारि देखि जननी निज भारत । साक अन्न बिन चहुँ दिस डौलै हाथ पसारत । फाटे चिथरन जोरि देहकी लाज निवा जब सोऊ नहिं मिलै विवश ह फिर उघारै ।। सूखे कर पद, फूले उदर, दीन, हीनबल, मलिनमुख । अब मात बेगि करुना करो, मेटहु मेटहु दुसह दुख ॥ (८) छाय रही चहुं ओर दुसह दारिद अंधियारी । आवहु आवहु दया करो मा जग-उजियारी । दयाकरा पग धरो होय मन्दिर उजियारो। नयनन जलसों सींच करें अभिषेक तुम्हारो॥ दीपक बार उत्सव करें, अम्ब चरन महं सिर धरै। सब भूलि हृदयको ताप दुख, मुदित मात पूजा करें। [ ६१९ ]