पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६४८

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जातीय-राष्ट्रिय-भावना चाटुकारिने बाबा तुमको औंधी बुद्धि मिखाई है, स्वार्थान्धता पकड़ तुम्हें उल्टे रस्ते पर लाई है। जातिका अपने नामीनेशनसे यह लाभ कराओगे, सबका एक साथ ही अपने हाथों नाममिटाओगे । अहा ! तुम्हारी आंखोंपर तो गहरी चरबी छाई है, मुसलमान लोगोंको भी क्यों देता नहीं दिखाई है। ट्रष्टी लोगों ( ५ ) के विल पर तुमने जो स्वांग मचाया था, डुयल युद्धमें मर रहनेका भारी भय दिखलाया था । उसको क्या इसलामी भाई भूल गये होंगे एकवार, लड़कर या मरकर सौंपा बेटेहीको कालिजका भार । हाय ढिठाई तिसपर भी तुम काला मुंह दिखलाते हो, अपनेको इसलामका हामी कहते नहीं लजाते हो ? यह तो हुआ जरा अब अन्तिम सम्भापण भी सुन लीजे, काम हमारा कहना है सुनके जो जी चाहे कीजे । धन बल वयस बड़ाई गौरव तुमने सब कुछ पाया है, पर अब उसका शेष होगया अन्त समय बस आया है। एक और भी आशा शेष रही है शायद पाओगे, मरते मरते जी० सी० एस० आई० भी तुम बन जाओगे। पर यह भी सोचो इसको पाकर कितने दिन जीओगे, अमृत रूप यह विष है कैसा समझके इसको पीओगे ? दोही चार वर्षमें तुमको पृथ्वीसे उठ जाना है, जिस घमण्डमें फूले हो उसका भी ठौर ठिकाना है। (५) अलीगढ़ कालिजके ट्रष्टियोंका कानून लेकर सर सैयदने बड़ा झगड़ा किया था। अपना पद अपने पुत्र मि० महमूदको दिलाना चाहते थे। इससे बहुत मुसलमानोंने विरोध किया था। सर सैयद उनसे लड़ गये थे। [ ६३१ ।