पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६९

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गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा - नापन्द किया।” यहो विवाहका प्रथम उद्योग था और यही अन्तिम । वह स्त्री थी, मिस इवान्स जार्ज इलियट । बुढ़ापेमें दोनोंमें बड़ा मेल हुआ था। जवानीमें स्पेन्मर नास्तिक था। उसी पद्धतिम उसने दर्शनकी आलो- चना आरम्भ की। कारलाइल और मिलस उमकी बड़ी मित्रता हुई । उसने कभी कोई उपाधि न ली, कभी राजाका दर्शन करने न गया, कभी धनीकी सेवा न की और न किमी मभाका सभापति हुआ । कभी खुली वक्तृता न की, कभी अपनी पुस्तक किमीको आलोचनाक लिये न दी। कभी किसी समाज या मण्डलीस कोई मम्मान या मर्यादाका पद न लिया। कभी किमीस कुछ न मांगा और कभी किसी मित्रस रुपयेकी सहायता आदि न ली। मामाजिकता या लौकिकता उसमें न थी। अचानक देखनसे मालूम होता था, कि यह आदमी कुछ नहीं है और बात करनेपर यह अनुभव होता कि वह बड़ा कर्कश आदमी है, पर मित्रके निकट वह अति स्नेहमय और भावमय था। लड़कोंको लेकर खेलना उसे बहुत पसन्द था। यही उसका एकमात्र आमोद था। बुढ़ापेमें वह ईश्वर-विश्वामी हुआ था। उसने देखा कि संसारके कार्य कारणों में एक उद्देश्य है। संमारमें जो कुछ होता है, वह मानो किसी मतलबसे होता है। मनुष्य कितनाही बेसुध क्यों न हो , उसके अन्तरमें एक आत्मानुभूति सदा जागती रहती है। वही जन्म मृत्युके बीचका अन्तर बता देती है । ऐसा क्यों होता है ? इसी प्रश्नसे स्पेन्सरने ईश्वरका होना अनुभव किया और धर्म कर्मकी जरूरत भी समझी। वह एक लासानी दार्शनिक था। उसके स्वयं अपने जीवनी लिख जानेपर बहुत लोग आश्चर्य करते हैं, कि ऐसा विद्वान जिसने विवर्तन- वादको दर्शनसे मिला दिया, अपनी जीवनी आप लिखे ! पर उस जीवनीमें भी उसकी दार्शनिक विश्लेषण-पटुता मौजूद है। विद्वान्का [ ५२ ]