पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/७०२

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हंसी-दिल्लगी चेले ग्वाली रोटी पावं, यही ढङ्ग मन भायारे । बम बम भोला भांगका गोला लाओ भैया चन्दा । गुरु हमारे मढ़ी बनावें काम पड़ा है मन्दा । बनेगा शिवका मन्दर, नमूना देखो सिर पर । धरम काजमें धन लगता है चिन्ता कुछ मत कीजे । जो पाव बाबाको दंगे देना हो मा दोजे ।। कहें, सो ही करते हैं. पेट अपना भरते हैं। भीख मांगने गुरुके कारन गये शिखण्डी भाय । मैं भरभण्डी लिया है मैंने सिर भवन उठाय !। देखिये हिम्मत मेरी, करू मैं मनी फेरी। गुरु मोहिं अलख लखाया जी । गुरु प्रसादसे सिर पर मैंने भवन उठाया जी ।। गुरुकी सेवा करी माधके तेल लगाया जी । भये प्रसन्न गुम्ने मुझको अमृत प्याया जी ।। अब मोहि सबसे प्यारा लागे भैसका जाया जी। जिधर देखता हूं आंखोंमें वही समाया जी ।। सब बालक धन धन जोगी धन धन भोगी धन्य धन्य अवतार । दया दृष्टि कर, लोजे जोगी, होलीका उपहार ।। हार कैसा सुन्दर है सवारी भी हाजर है। चटपट आप सवार हुजिये पहन गलेमें हार । झण्डा लिये हाथमें चलिये फिरिये सरेबजार ।। धूम तब होगी गहरी सुना मेरे बाबा लहरी । भारतमित्र, २७ मार्च १८९९ ई० । [ ६८५ ।