गुप्त-निबन्धावली स्फुट-कविता तानसेन । (१) यह आप जानते है विक्रम था एक राजा । दरबार नौरतनसे था उसका जगमगाता ।। था तानसेन भी एक उस्ताद पूरा पूरा। दरबारमें वह उसके एक रोज आन पहुंचा। अर्थात् उस जगह वह सचमुच ही आपहुंचता । पर क्या करे वह तब तक पैदा नहीं हुआ था ! तब तानसेनजीने की रेलकी सवारी । पूछा तो कहा अब है कलकत्तेकी तयारी ।। भाडेकी गाड़ी लेकर हुगलीके पुलसे होकर । एक ठाठसे गया वह विक्रमके घरके भीतर ।। अर्थात वह निश्चयही विक्रमके घरपे जाता। क्या करे कि तब तक पुलही नहीं बना था ? कलकत्तमें फिर उसकी कुछ भी न थी निशानी । उज्जनमें थी उस दम विक्रमकी राजधानी ।। (३) तब तानसेन अपनी विद्या लगा दिखाने । एक खूबसा पियानो लेकर लगा बजाने ।। अर्थात वह पियानो अच्छी तरह बजाता । पर क्या करे वह बाजा तब तक नहीं बना था ? जो हो फिर उसने ऐसा डटकर मलार गाया। दरबार भरको उसने राजा सहित भिजाया ।। [ ६८८ ]
पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/७०५
दिखावट