गुप्त-निबन्धावली
स्फुट-कविता
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लड़के लाड़े टेसू खेले, कुढ़ मुहें सब पापड़ बेलें ।
कह भई मुन्ना कैसी बात, हां भई चुन्ना सब कुशलात ॥
-भारतमित्र, १. अक्टूबर १८९९ ई०
अबके टेसू रंगरंगीले, अबकं टेसू छैल छबीले ।
अबके शान बड़ी है आला, अबके है कुछ ढङ्ग निराला ।
बड़ी धूमसे टेसू आये, लड़के लाड़ी साथ लगाये ।
होगा दिल्ली में दरबार, सुनकर चौंक पड़ा संसार ।
शोर पड़ा दुनियामें भारी, दिल्लीमें है बड़ी तयारी ।
देश देशके राजा आवं, खेमें डेरे माथ उठावें ।
घर दर बेचो करो उधार, बढ़िया हो पोशाक तयार ।
बढ़िया रेशम बढ़िया जरी, अच्छीसे अच्छी और खरी ।
चमचम चमचम मोती चमक, हीरे लाल दमादम दमक।
हाथी घोड़ भीड़ भड़ाका, देख सब घरफंक तमाशा ।
आओ मब घाटोके लोग, आओ घर बाटीके लोग।
आओ काम करने वालो, आओजी रंग भरने वालो।
चलो चलो सब खेल खिलारी, आओ आओ सब ढिमधारी।
देखा सुना न जो कुछ कभी, दिल्लीमें वह होगा सभी।
भर भर बीयर चल सन्दूक, बीस हजार चल बन्दूक ।
मार धड़ाधड़ तोप चलं, दिल सब नामक हल।
बिजली कर रोशनी जाकर, भरे हाजिरी बनकर चाकर ।
ऐसा आन पड़ा है जोग, दुनिया भरके आवं लोग।
बादशाहके भाई आवं, साथ साथ कितनोंको लावं ।
बड़े लाटकी माता आवं, साथमें उनके भ्राता आवं।
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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/७१५
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