हंसी-दिल्लगी
(४)
किसने दिया गुफामें किचनरकी मूछोंको झटका.
किसको बालफूर और उसके लोगोंने धर पटका ?
बोले कर्जन “सचमुच वह एक बुरी पटखनी खाई,
अपनी आप ग्वोपड़ी मानो पत्थरसे टकराई।"
किसने बङ्गभूमिको दो टुकड़े करके दिखलाया,
किसने बेरहमीसे भाई-भाईको बिछड़ाया ?
बोले कर्जन “इसका कर्ता हूं बस में ही अकेला,
हाथ हैं मेरे लोहेके, दिल है पत्थरका ढला।"
किसने मनचष्टरको सड़कों-सड़कोपर टकराया,
किसने मलमल और कपड़ोंको आंधीमें उड़वाया ?
"किया है मैंने" कर्जन बोले “रञ्ज करेगी चेम्बर,
भूत भरे इसका हरजाना जब पहुंचं अपने घर ।”
किसने देशी चीजोंमें फिर सञ्चय प्राण कराया,
किसने सब तूफान बखेड़ोंको यहांसे भगवाया।
किसने सब बाबू लोगोंका नेशन एक बनाया ?
"किया तो है पर इच्छासे नहिं" कर्जनने फरामाया ।।
-भारतमित्र, १८ नवम्बर १९०५ ई०
छोड़ चले शाइस्ताखानी
रोती छोड़ी प्यारी रानी ;
उम्मीदों पर फेरा पानी,
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