अकबर बादशाह उमर संस्कृतकी आलोचनामें बीती, तिसपर भी वह पक्क कृस्तान थे, अपने कृम्तान धर्मको सबसे ऊंचा कर दिखाने में उन्होंने कमी नहीं की। हमारे देशमें अंगरजी आदि पढ़कर लोग पागल होजाते हैं और विदेशीय भाव- में डूब जाते हैं, अपने धर्मको ग्यो बैठते हैं। ऐसे लोगोंको देखना चाहिये कि क्योंकर मेक्ममूलर संस्कृत-चर्चा करते हुए, संमार भरके धमौकी चर्चा करते हुए भी अपने कृस्तान धर्ममें दृढ़ थे । मेक्समूलरकी मृत्युसे हमें हर्ष है और विपाद भी है। हर्ष यह है कि उन्होंने अच्छी आयु पाई, अच्छा यश पाया। यशम्वी बूढ़ेक मरनेपर हिन्दृ हप करते हैं। विषाद इस वातका है कि विलायतवालोंको चाहे मेक्समूलर जैसे लोग मिल जायं, परन्तु हम भारतवामियोंको हमारी देववाणी संस्कृतका आदर करनेवाला मेकममृलर न मिलेगा। -भारतमित्र १९०० ई. अकबर बादशाह मकबर बादशाहका दादा बाबर काबुलसे हिन्दुस्थानमें आया और मं० १५८३ विक्रमाव्दमें दिल्लीके बादशाह इब्राहीमग्याँ लोदीको मारकर उसके राज्यका अधिकारी हुआ । संवत १५८८ में बाबर मर गया और उसका बड़ा बेटा हुमायू उसके राज्य सिंहासनपर बैठा। संवन १५६७ में शरखां पठानने उससे लड़कर उसकी बादशाहत छीनली । तब हुमायूं पंजाब और सिन्धसे होकर मारवाड़को गया और उसी विपद्ग्रस्त दशामें फिर मिन्धको लौटा। मिन्ध देशके अमरकोट स्थानमें पहुंचनेपर कार्तिक सुदी ५ सं० १५६६ को अकबरका जन्म हुआ। हुमायूँ अकबरको काबुल ले गया और उसे वहीं छोड़कर ईरान चला गया। ईरानके बादशाहने उसे सहायता दी और उससे उसने सं० १६१२ में पठानोंको निकालकर फिर दिल्लीपर अपना अधिकार कर
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