पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/८५

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गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा रोकड़, खाना, नकल, यह तीन बहीम काम । ज्यादा बहिय' मत करो, बथा जयगे दाम !' ऊपरके दोहेमें बहियोंकी संग्च्या बहुत गिनाई गई है। पर साधारण- में तीन बहियोंसे काम लिया जाता है। आठ बहियोंका कागज भी बडी-बड़ी कोठियां करती हैं, पर हजार या नीनमा माठ बहियोंका खाता कैसा होता था, कह नहीं सकते। बही-खाता लिम्बनेका ढंग बनाते है... बाम जमा दक्षिण खरच, सिर पेटा पर पेट । ___ऊपर नाम धनी 'लव हात पुनरी दंट . किन चीजोंका वाणिज्य करना चाहिये प्रथम जवाहिर धातु पुनि, कपड़ा गला बीर ! मुलपान फल कल रस, घरे धीर कर धीर । अर्थात म्वृब मोच विचारकर कि कौन चीज़ कितने दिन ठहरनेवाली है, उसका वाणिज्य करना उचित है । बहुतसी रूम्बी बान पढ़ते-पढ़ते पाठकोंकी नबीयन कुन्द हो जायगी. इससे एक चटपटा सिद्धान्त मुनाते हैं। क्या अच्छा सिद्धान्त है- दाना खग्य लीद जो करें, ऐसा साह बनज नहीं करें घास खाय दूध बहु देय, ऐसा साह बनज करि लेय । भारतवर्षके वैश्य ठीक इसी चालपर चलते थे । पर ज़मानेकी देवा- देखी अब उल्टी चाल चलते हैं। टोडरमल खत्री थे, तथापि वैश्य लोगोंकी बिरादरी और दूसरी जाति वालोंको बिरादरियाँ उन्हींका क़ानून मानकर इतने दिन बढ़ रहीं। पर अब ढीलो होगईं। कहते हैं कि बहीखाता फुरतीसे लिखा जावे, इसके लिये टोडरमलने मात्रा-विहीन मुड़िया अक्षर चलाकर उनकानाम सराफी [ ६८ ]