गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा दौरा होनेसे भारतवासी अपने कवियांको भूलकर शव मादीहीको जानने लगे। फारमीके कितने ही नामी-नामी कवि हुए हैं । शेख सादोसे पहले तथा पीछे अच्छे कवियोंकी कमी न थी। पर जो मतबा इस शेग्वने हामिल किया, वह किमी कविको न मिला। अन्यान्य कवियोंको मुसल- मान-कवि ही समझते थे. पर शेख मादीको एक ऊंचे दरजेका बुजुर्ग और खुढारमीदा समझते थे । एक मुसलमान-कविने तो यहां तक श्रद्धा प्रकाश की थी कि शख सादीको हजरत मुहम्मदके पास बैठ हुए स्वप्नमें देखा था। ___ तीन किताबोंके लिय शेख मादीका भारतवर्ष में बड़ा नाम है गुलि- म्नान, बोस्तान और करीमा । यह तीनों पुस्तक हिन्दुस्थानक मकतबोंमें सैकड़ों वर्ष तक पढ़ी-पढ़ाई गई। अब भी पढ़ाई जाती हैं। सरकार अंगरेजीके स्कूलों में भी इन पुस्तकांका मार-संग्रह अब तक पढ़ाया जाता है। किन्तु अब अंगरेजोके जोरके कारण इन पुस्तकोंकी वह इजन कम होती जाती है। फारसी शिक्षाही छटनी जाती है तो फारमी किताबोंका क्या आदर रह सकता है ? ___ उक्त तीनों किनावांमें शंख मादीने नीति वर्णनकी है। इनमेंस 'करीमा' छोटी किताब है। बच्चे उसे पढ़ते हैं और शग्व मादीने भी बचपन- हीमें उसे लिया था। सरकारी स्कूलों में यह पोथी कभी नहीं पढाई गई। केवल मकतबोंमें मुल्ला मौलवीही उसे पढ़ाते रहे । “गुलिस्तान” का आदर सबसे अधिक है और यही सबसे उत्तम है। "गुलिस्तान" गद्य और पद्य- मय है । इमसे दूसरे दरजेकी “बोम्तान" है। वह कंवल पद्यम है। इन दोनों पुस्तकोंका आदर यूरोपमें भी ग्वब हुआ है। अंगरेजीक सिवाय वहाँकी कई भापाओंमें उसका अनुवाद भी हुआ है। विलायतवालांने उक्त दोनों पुस्तकोंको बहुन शुद्ध छपवाकर प्रकाशित किया। पर जितनी अधिक यह पुस्तक भारतवर्षमें छपी और बिकीं, उतनी ईरानमें भी नहीं विकी। .[ ७० ]