सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुप्त-निबन्धावली चारत-चर्चा लम्बा है। इसीके एक मकानमें दो आधे साइजकी तसवीर लटकती हैं। उनमेंसे एक हाफिज़की पूर्वी दरवाजेपर और दूसरे शेखमादीकी पश्चिी द्वारपर लटकती है। शेख सादीकी भांति नीति लिग्वनेवाले फारामें बहुतही कम हुए हैं। उसकी “गुलिस्तान" के बन जानेके बाद कई आदमियोंने वैमीही किताब बनाई। पर किसीसे मादीकी बगवगे न हो मकी और न उनकी पुस्तकोंको कोई पूछता है। मादीके लाग्बमं मादापन बड़ा भारी है। फिर कहनेका ढंग इतना सुन्दर है कि सुनकर तबीयत खिल जाती है। उसकी कविता खिले हुए फलके महश है। इमसे उसने अपनी किताबोंका नाम “गुलिम्तान" "बाम्तान" ठीक हो गया है । कड़ी यातका मीठे ढंगसे कहना, न कहनेक योग्य वानको हमी-हमीमें कह जाना. गंग्य सादीहीका हिम्सा है। शेख मादीकी ऊपर कही किनावास मुमलमानी नीति तथा मान माँ बग्म पहलेकी ईरान, तातार, अरब. मिमर और म्म आदि मुसलमान देशोंकी दशा, मुसलमानोंका चाल-चलन, रङ्ग-ढङ्ग और उस ममयक बादशाहोंकी शासन प्रणाली, मुसलमानोंकी विद्या-बुद्धि तथा उन्म समय के लोगोंके विचारोंका अच्छा पता लगता है। माथ ही यह भी मालम होजाता है कि भिन्न धर्म और भिन्न जातिक लोगोंको वह किम दृष्टिसे देग्वते थे। उस समयके कवि बादशाहोंकी लम्बी-चौड़ी म्खुशामदको अपनी कविताका भूपण ममझते थे, पर शेग्व मादीने एमी खुशामदको निन्दा की है और म्वयं बहुत कम ग्खुशामद की है। पर की है अवश्य। बादशाहांको मागपर चलने और अच्छा न्याय करनेका उपदेश दिया है। परमार्थको ओर मादीने लोगोंका ध्यान बहुत कुछ दिलाया है। सूफीपन और माधुता भी खूब दिखाई है। विद्वानोंका आदर और धनवानोंका निरादर भी सादीके लेबमें है। देश-विदेश