शाइस्ताखाँ अब अंग्रजोंने देग्वा कि यदि हम कुछ अपना जोर नहीं दिग्वाते तो कुल व्यापार मदाके लिये हाथसे निकल जायगा। उन्होंने अपने बाद- शाह दमरे जेम्मसे मुग़लोंसे लड़नेकी प्रार्थना की। उमने प्रार्थना म्वीकार करके १० जंगी जहाज बहुतमी फौजक माथ हिन्दुस्थान भेजे। पर इनमम कंवल २।४ जहाज मन १६८६ ई. में भगीरथीके मुहाने तक पहुंच सके : बाकी आंधी आदि देवी आपदोंक कारण गम्तेहीमें रह गये । इन जहाजोंके हुगली पहुंचनेक कुछ दिन बाद हुगलीक बाजार एक दिन ३ अंग्रेजी सिपाहियोंस शाही मिपाहियोंकी तकरार होगई । वान बढ़ते-बढ़ते यहां तक पहुची कि कुल अंग्रेजी फौज बाहर निकल आई और शाही फौजसे ग्वत्र घमामानकी लड़ाई हुई । हुगली नदीमें ठहरे हुए अंग्रेजो जंगी जहाजने भी नगर पर ग्वब गोले बग्माये. जिनसे', माँ मकान गिर पड़ और बहुतसे मनुष्य मारे गये और जखमी हुए। शाइ- म्ताग्बाक कानां तक ज्योंही यह बात पहुंची उसने अंग्रेजोंकी पटना. मालदह. ढाका और कासिमबाजारकी कोठियां जबत कर ली और उन्हें मजा देनेक लिये हुगली पर फौज भेजी। उस समय तो अगरेज हुगली छोड़कर भाग गये. पर थोड़ही दिन वाद सन १६८७ ई. में नवावसे कह सुनकर उन्होंने मुलह कर ली। पर नवाब शाइम्ताग्वां अब अगरेजोंसे बहुत चिढ़ा हुआ था। उसने उनको अब भा चैन न लेने दिया। पहली आज्ञा उसने यह दी कि अङ्गरेज हुगलीक ममीप कोई मकान पत्थर और मिट्टीसे न बनवावें । उधर विलायतमें ईस्टइण्डिया कम्पनी---- को जब हुगलीके झगड़का हाल मालूम हुआ, तब उसने दृमरी फौज हिन्दुस्थानके लिये रवाना की। यह फौज सन १६८८ के अक्टोबर --- में हीथ नामक एक जिद्दी और क्रोधी कप्तानकी अधीनतामें बंगाल पहुंची। कप्तान हीथने कम्पनीके गवर्नरके कहते रहने पर भी कम्पनीके कुल कर्मचारियों और माल असबाबको जहाजोंपर लादकर बालासोरको [ ७७ ]
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