पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/९६

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मौलवी मुहम्मदहुसेन आजाद-१ दर १८५८ के बाद ज़बाने उट्टको चन्द ऐसे मोहमिनी मिले, जिन्होंने |इसके सीगार नमर३ को बहुत नरक्क़ी दी, और इसका पाया, बुलन्द किया। इन बुज़ोंमेंसे कुछ तो इस दुनियां में अपना काम अंजाम कर चुके और कुछ अभी ममम्फ़ हैं। मगर जल्द-जल्द खत्म कर रहे हैं ; यह नज़ाग८ भी थोड़ी देरके लिये है। आँग्व चाहती हैं कि अभी यह मामनेसे न हट। यह मितारे अभी और चमक। सुबह ज़रा आहिस्ता-आहिम्ना हो। ___ नमर उर्दुकी इन इज्ज़त बढ़ानेवाले, बुज़गों से मर मय्यद अहमद रखा और पंडित रतननाथ सरशार, इस दुनियामें नहीं हैं। शम्म- उल-उलेमा मौलवी नज़ीर अहमद, शम्स-उल-उलमा मौलवी ज़का उल्लाह, शम्स-उल-उलेमा मौलवी मुहम्मद हुसेन आज़ाद देहलीके तीन आफ़ताब९ और मुन्शी सज्जाद हुसेन (एडीटर "अवध पंच") लग्वनवी, इन चारमेंसे तीन अभी अपने-अपने काममें लगे हुए हैं---चौथं आज़ाद कई सालसे फारग। हो गये हैं। अब वह वेफिकरीके आलम११ में हैं। इस आलम १२ के कामोंको तक१३ कर चुके हैं। अब दुनियाँ, नर्क करने या न करनेकी भी परवा नहीं है। बहिश्तका लालच नहीं है। इस मुल्कके तारकउलदुनिया १४ मरताज़ लोगोंकी तरह जीते जीही कदे ज़िन्दगीसे आज़ाद हैं-शहर, बियाबान और दुनिया उकबा 1५ सबसे बेपर्वा हैं। वह सच्चे आज़ाद थे और अब मच्चे आज़ाद हैं। गो १-उपकारी । २-विभाग । ३-गद्य । ४-स्थान । ५–मान । - समाप्त । ७-व्यस्त । ८-दृश्य । ९-सूर्य । १०-मुक्क। ११-अवस्था, दशा। १२-संसार । १३-छोड़। १४-संन्यासी। १५-परलोक । [ ७९ ]