मौलवी मुहम्मद हुसेन आज़ाद इनके नावलोंको सबने पसन्द किया, जो राह उन्होंने निकाली, वह सबने पसन्द की। इनकी शोहरतके झण्डे गड़ गये। वह अँग्रेज़ी-दां, और अपनी ज़बानके आशिक़, दोनों ज़बानोंके खयालातको मिलाकर उन्होंने उर्दू फ़सानानवीसीमें एक अजीब लुत्फ़ पैदा कर दिया। क्रांतिकारी लेखक अब भी इस तज़ को बहुत तकलीद३० होती है। शम्स-उल-उलेमा मौलवी नज़ीर अहमद साहबकी फ़सानानवीसी दूसरी किस्म की है। तर्ज तहरीर ३१ की सादगीसे उन्होंने हज़ारों रंगीनियोंका रंग फ़ीका कर दिया। इनकी किताबें पाकीज़ा, और शुस्ता उर्दूका नमूना हैं। देहलीकी ज़बानका लुत्फ़ हासिल करना हो तो इनकी एक किताबको उठाकर कहींसे पढ़ने लग जाओ। यह खूबी इनके कुरानके तर्जुमामें भी मौजूद है। अगरचे इनकी किताब खास ढंग की हैं, और इनका ज्यादातर ताल्लुक मुसलमान सोसाइटीसे है, ताहम ज़बानकी खूबीके हिसाबसे वह फर्द ३२ हैं। अगर वह महदूदखयालीसे ३३ काम न लेते तो न जाने उईको कहाँ तक फायदा पहुंचा सकते, और किस दर्जातक इनकी तहरीरकी शोहरत और इज्ज़त होती। शम्स-उल-उलेमा मौलवी ज़काउल्लाने रियाज़ी ३४ साइन्स और तारीख, जुगराफियाकी किताब उर्दूमें तैय्यार की। सूबाजात मुत्तहिदा और पंजाबके तुलबाने ३५ इनकी किताबोंसे बहुत फायदा उठाया और उठाते हैं। आपका तजें तहरीर खूब सादा और साफ है । इसमें ज़बान देहलीकी खूबी और ज़राफ़त ३६ का चटखारा भी साथ साथ मौजूद है। साइन्सकी बात समझाते हुए भी वह पढ़नेवालेको हँसा देते हैं। आजकल तारीखकी तरफ आपकी तवजह ज्यादा है। आपकी यह पीरानासाली ३७ की मेहनत बड़े-बड़े नौ-उम्र अहले कलमको हैरतमें ३०-अनुसरण । ३१–लेखन-शैली। ३२–एक। ३३-सीमित, सकुचित । ३४-गणित। ३५–छात्रों। ३६--हास्य । ३७-वार्द्धक्य । [ ८१ ] ६
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