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नसीहतों का दफ्तर
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दी। दर्शक वास बाग़ हो गये । तारीफों के नारे बुलन्द हुए। शकुन्तला का जो काल्पनिक चित्र खिंच सकता है, वह आंखों के सामने खड़ा था-वही प्रेमिका का खुलापन, वही आकर्षक गम्भीरता, वही मतवाली चाल, वही शर्मीली आँखें! अक्षय बाबू पहचान गये, यह सुन्दर हँसमुख हेमवती थी।

बाबू अक्षयकुमार का बेहरा गुस्से से लाल हो गया । इसने मुझसे वादा किया था कि मैं नाटक में न जाऊंगी। मैंने घंटों उसे समझाया। अपनी असमर्थता लिखने पर तैयार थी। मगर सिर्फ दूसरों को रिझाने और लुभाने के लिए, सिर्फ दूसरों के दिलों में अपने रूप और अपनी अदाओं का जादू फूंकने के लिए, सिर्फ दूसरी औरतों को जलाने के लिए उसने मेरी नसीहतों का और अपने वादे का, यहाँ तक कि मेरी अप्रसन्नता का भी जरा भी खयाल न किया!

हेमवती ने भी उड़ती हुई निगाहों से उनकी तरफ़ देखा। उनके बाँकपन पर उसे जरा भी ताज्जुब न हुआ। कम-से-कम वह मुस्करायी नहीं।

सारी महफ़िल बेसुध हो रही थी। मगर अक्षय बाबू का जी वहां न लगता था। वह बार-बार उठके बाहर जाते, इधर-उधर वैचैनी से आंखें फाड़-फाड़ देखते और हर बार झुंझलाकर वापस आते । यहां तक कि वारह बज गये और अब मायूस होकर उन्होंने अपने आप को कोसना शुरू किया-मैं भी कैसा अहमक हूं। एक शोख औरत के चकमे में आ गया। जरूर इन्हीं बदमाशों में से किसी की शरारत होगी। यह लोग मुझे देख-देखकर कैसा हँसते थे ! इन्हीं में से किसी मसखरे ने यह शिगूफा छोड़ा है। अफ़सोस ! सैकड़ों रुपये पर पानी फिर गया, लज्जित हुआ सो अलग। कई मुकदमे हाथ से गये । हेमवती की निगाहों में जलील हो गया और यह सब सिर्फ इन डाहियों की खातिर ! मुझसे बड़ा अहमक और कौन होगा!

इस तरह अपने ऊपर लानत भेजते, गुस्से में भरे हुए वे फिर महफ़िल की तरफ़ चले कि एकाएक एक सरो के पेड़ के नीचे वह हरित-वसना सुन्दरी उन्हें इशारे से अपनी तरफ़ बुलाती हुई नज़र आयी। खुशी के मारे उनकी बाँछे खिल गयीं, दिलोदिमाग पर एक नशा-सा छा गया। मस्ती से कदम उठाते, झूमते और ऐंडते उस स्त्री के पास आये और आशिकाना जोश के साथ बोले----ऐ रूप की रानी, मैं तुम्हारी इस कृपा के लिए हृदय से तुम्हारा कृतज्ञ हूँ। तुम्हें देखने के शौक़ में इस अधमरे प्रेमी की आँखें पथरा गयीं और अगर तुम्हें कुछ देर तक और यह आँखें देख न पातीं तो तुम्हें अपने रूप के मारे हुए की लाश पर हसरत के आंसू बहाने पड़ते । कल शाम ही से मेरे दिल की जो हालत हो रही है, उसका जिक्र बयान