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राजहठ
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रनी ने पूछा- यह क्या कायापलट हो गयी। यह सब अचलगढ़ से लौटे आते हैं और ऐन दशहरे के दिन ?

इन्दरमल बड़े गर्व से बोले—यह पोलिटिकल एजेण्ट के इनकारी तार के करिश्मे हैं, मेरी चाल बिलकुल ठीक पड़ी।

रानी का सन्देह दूर हो गया। जरूर यही बात है। यह इनकारी तार की करामात है । वह बड़ी देर तक बेसुव-सी जमीन की तरफ़ ताकती रही और उसके. दिल में बार-बार यह सवाल पैदा होता था, क्या इसी का नाम राजहठ है ?

आखिर इन्दरमल ने खामोशी तोड़ी-क्या आज' चलने का इरादा है कि कल ?. रानी--कल शाम तक हमको अचलगढ़ पहुंचना है, महाराज घबराते होंगे।

--जमाना, सितम्बर १९१२