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गुप्त धन
 

साल भर गुजर गया। भगनदास की मुहब्बत और रम्भा के सलीके ने मिलकर उस वीरान झोपड़े को कुंज बाग़ बना दिया। अब वहाँ गायें थीं, फूलों की क्यारियाँ थीं और कई देहाती ढंग के मोढ़े थे। सुख-सुविधा की अनेक चीजें दिखायी पड़ती थीं।

एक रोज सुबह के वक्त मगनदास कहीं जाने के लिए तैयार हो रहा था कि एक सम्भ्रान्त व्यक्ति अंग्रेज़ी पोशाक पहने उसे ढूँढ़ता हुआ आ पहुँचा और उसे देखते ही दौड़कर गले से लिपट गया। मगनदास और वह दोनों एक साथ पढ़ा करते थे। वह अब वकील हो गया था । मगनदास ने भी अब उसे पहचाना और कुछ झेंपता और कुछ झिझकता उससे गले लिपट गया। बड़ी देर तक दोनों दोस्त बातें करते रहे। वाते क्या थीं घटनाओं और संयोगों को एक लंबी कहानी थी। कई महीने हुए सेठ लगन का छोटा बच्चा चेचक की नज़र गया। सेठ जी ने दुख के मारे आत्महत्या कर ली और अब मगनदास सारी जायदाद, कोठी, इलाके और मकानों का एकछत्र स्वामी था। सेठानियों में आपसी झगड़े हो रहे थे। कर्मचारियों ने गबन को अपना ढंग बना रखा था। बड़ी सेठानी उसे बुलाने के लिए खुद आने को तैयार थीं, मगर वकील साहब ने उन्हें रोका था। जब मगनदास ने मुस्कराकर पूछा--तुम्हें क्योंकर मालूम हुआ कि मैं यहाँ हूँ तो वकील साहब ने फरमाया----महीने भर से तुम्हारी ही टोह में हूँ। सेठ मक्खनलाल ने अता-पता बतलाया। तुम दिल्ली पहुँचे और मैंने अपना महीने भर का बिल पेश किया।

रम्भा अवीर हो रही थी कि यह कौन है और इनमें क्या बातें हो रही हैं ? दस बजते-बजते वकील साहब मगनदास से एक हफ्ते के अन्दर आने का वादा लेकर विदा हुए। उसी वक्त रम्भा आ पहुंची और पूछने लगी- यह कौन थे, इनका तुमसे क्या काम था?

मगनदास ने जवाब दिया--यमराज का दूत।

रम्भा-क्या असगुन बकते हो!

मगन-जहीं रम्भा, यह असगुन नहीं है, यह सत्रमुच मेरी मौत दूत मेरी खुशियों के बाग़ को रौंदनेवाला, मेरी हरी-भरी खेती को उजाड़नेवाला, रम्भा मैंने तुम्हारे साथ दग़ा की है, मैंने तुम्हें अपने फ़रेब के जाल में फँसाया है, मुझे माफ़ करो। मुहब्बत ने मुझसे यह सब करवाया। मैं मगनसिंह ठाकुर नहीं हूँ; मैं सेठ लगनदास का बेटा और सेठ मक्खनलाल का दामाद हूँ।

मगनदास को डर था कि रम्भा यह सुनते ही चौंक पड़ेगी और शायद उस