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गुप्त धन
 

न था कि एक युवती मेरे बगल में बैठी है, जिसके दिल का मैं मालिक हूँ। उसी धुन मे था कि एक युवती मेरे बगल में बैठी है, जिसके दिल का मैं मालिक हूँ। उसी धुन में वह मस्त था। बदनामी का डर, कानून का खटका, जीविका के साधन, इन समस्याओं पर विचार करने की उसे उस वक्त फुरसत न थी। हाँ, उसने कश्मीर का इरादा छोड़ दिया। कलकत्ते जा पहुँचा। किफायतशारी का सबक न पड़ा था। जो कुछ जमा-जथा थी, दो महीनों में खर्च हो गयी। ललिता के गहनों पर नौबत आयी। लेकिन नानकचन्द' में इतनी शराफत बाकी थी। दिल मज़बूत करके बाप को खत लिखा, मुहब्बत को गालियाँ दी और विश्वास दिलाया कि अब आपके पैर चूमने के लिए जी बेकरार है, कुछ खर्च भेजिए। लाला साहब ने खत पड़ा, तसकीन हो गयी कि चलो जिन्दा है और खैरियत से है। धूम-धाम से सत्यनारायण की कथा सुनी। रुपया रवाना कर दिया, लेकिन जवाब' में लिखा-खैर, जो कुछ तुम्हारी किस्मत में था वह हुआ। अभी इवर आने का इरादा मत करो। बहुत बदनाम हो रहे हो। तुम्हारी वजह से मुझे भी बिरादरी से नाता तोड़ना पड़ेगा। इस तूफान को उतर जाने दो। तुम्हें खर्च की तकलीफ न होगी। मगर इस औरत की बांह पकड़ी है तो उसका निवाह करना, उसे अपनी ब्याहता स्त्री समझो।

नानकचन्द के दिल पर से चिन्ता का वोझ उतर गया। बनारस से माहवार वज्ञीफ़ा मिलने लगा। इवर ललिता की कोशिश ने भी कुछ दिल को खींचा और गो शराब की लत न छूटी और हफ्ते में दो दिन जरूर थियेटर देखने जाता तो भी तबीयत में स्थिरता और कुछ संयम आ चला था। इस तरह कलकत्ते में उसने तीन साल काटे। इसी बीच उसे एक प्यारी लड़की के बाप बनने का सौभाग्य हुआ जिसका नाम उसने कमला रक्खा।

तीसरा साल गुज़रा ही था कि नानकचन्द के उस शान्तिमय जीवन में हलचल पैदा हुई। लाला ज्ञानचन्द का पचासवाँ साल था जो हिन्दोस्तानी रईसों की प्राकृ- तिक आयु है। उनका स्वर्गवास हो गया और ज्योंही यह खबर नानकचन्द को मिली वह ललिता के पास जाकर चीखें मार-मारकर रोने लगा। जिन्दगी के नये-नये मसले अब उसके सामने आये। इस तीन साल की सँभली हुई जिन्दगी ने उसके दिल से शोहदेपन और नशेबाज़ी के खयाल बहुत कुछ दूर कर दिये थे। उसे अब यह फिक सवार हुई कि चलकर बनारस में अपनी जायदाद का कुछ इन्तजाम करना चाहिए, वर्ना सारा कारोबार धूल में मिल जायगा। लेकिन ललिता को क्या करूँ। अगर इसे वहाँ लिये चलता हूँ तो तीन साल की पुरानी घटनाएँ ताज़ी हो जायेंगी