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मिलाप
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और फिर एक हलचल पैदा होगी जो मुझ हुक्काम और हमजोलियों में जलील कर देगी। इसके अलावा उसे अब कानूनी औलाद की जरूरत भी नज़र आने लगी! यह हो सकता था कि वह ललिता को अपनी व्याहता स्त्री मशहूर कर देता लेकिन इस आम खयाल को दूर करना असम्भव था कि उसने उसे भगाया है। ललिता से नानकचन्द को अब वह मुहब्बत न थी जिसमें दर्द होता है और बेचैनी होती है। वह अब एक साधारण पति था जो गले में पड़े हुए ढोल को पीटना ही अपना धर्म समझता है, जिसे बीवी की मुहब्बत उसी वक्त याद आती है, जब वह बीमार होती है। और इसमें अचरज की कोई बात नहीं है अगर जिंदगी की नयी-नयी उमंगों ने उसे उकसाना शुरू किया। वे मंसूबे पैदा होने लगे जिनका दौलत और बड़े लोगों के मेल-जोल से संबंध है। मानव भावनाओं की यही साधारण दशा है। नानकचन्द अब मजबूत इरादे के साथ सोचने लगा कि यहाँ से क्योंकर भागूं। अगर इजाज़त लेकर जाता हूँ तो दो-चार दिन में सारा पर्दा फ़ाश हो जायेगा। अगर हीला किये जाता हूँ, तो आज के तीसरे दिन ललिता बनारस में मेरे सर पर सवार होगी। कोई ऐसी तरकीब निकालू, कि इन सम्भावनाओं से मुक्ति मिले। सोचते-सोचते उसे आखिर एक तदवीर सूझी। वह एक दिन शाम को दरिया की सैर का बहाना करके चला और रात को घर पर न आया। दूसरे दिन सुबह को एक चौकीदार ललिता के पास आया और उसे थाने में ले गया। ललिता हैरान थी कि क्या माजरा है। दिल में तरह-तरह की दुश्चिन्तायें पैदा हो रही थीं। वहाँ जाकर जो कैफियत देखी, तो दुनिया आँखों में अँधेरी हो गयी। नानकचन्द के कपड़े खून में तर-ब-तर पड़े थे। उसकी वही सुनहरी घड़ी, वही खूबसूरत छतरी, वही रेशमी साफा, सब वहाँ मौजूद था। जेब में उसके नाम के छपे हुए कार्ड थे। कोई सन्देह न रहा कि नानकचन्द को किसी ने कत्ल कर डाला। दो-तीन हफ्ते तक थाने में तहकीकातें होती रहीं और आखिरकार खूनी का पता चल गया। पुलिस के अफसरों को बड़े-बड़े इनाम मिले, इसको जासूसी का एक बड़ा आश्चर्य समझा गया। खूनी ने प्रेम की प्रतिद्वन्द्विता के जोश में यह काम किया। मगर इधर तो गरीब, बेगुनाह खूनी सूली पर चढ़ा हुआ था और वहाँ बनारस में नानकचन्द की शादी रचायी जा रही थी।

लाला नानकचन्द की शादी एक रईस घराने में हुई और तब धीरे-धीरे फिर वही पुराने उठने-बैठनेवाले आने शुरू हुए। फिर वही मजलिसें जमीं और फिर वही