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२१४ गुप्त धन

वाली आत्माओ! तुम धन्य हो कि घमण्ड के पुतले भी तुम्हारे पैरों की धूल को माथे पर चढ़ाते हैं।

कुंअर सज्जन सिंह ने मुझे छाती से लगाकर कहा-मिस्टर वागले, आज आपने मुझे सच्चे गर्व का रूप दिखा दिया और मैं कह सकता हूँ कि सच्चा गर्व सच्ची प्रार्थना से कम नहीं। विश्वास मानिये मुझे इस वक्त ऐसा मालूम होता है कि गर्व में भी आत्मिकता को पाया जा सकता है। आज मेरे सिर में गर्व का जो नशा है, वह कभी नहीं था।

-जमाना, अगस्त १९१६