पृष्ठ:गुप्त धन 1.pdf/२३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
विजय
२१९
 

मलाई थी, किसी में कोरमे और कबाब, किसी में खुवानी और अंगूर, कहीं कश्मीर की नेमतें सजी हुई थीं, कहीं इटली की चटनियों की बहार थी और कहीं पुर्तगाल और फ्रांस की शराबें शीशियों में महक रही थीं।

मलका की फौज यह संजीवनी सुगन्ध सूंघते ही मतवाली हो गयी। लोगों ने हथियार फेंक दिये और इन स्वादिष्ट पदार्थों की ओर दौड़े, कोई हलुए पर गिरा,कोई मलाई पर टूटा, किसी ने कोरमे और कबाब पर हाथ बढ़ाये, कोई खुबानी और अंगूर चखने लगा, कोई कश्मीरी मुरब्बों पर लपका, सारी फौज भिखमंगों की तरह हाथ फैलाये यह नेमतें मांगती थी और बेहद चाव से खाती थी। एक-एक कौर के लिए, एक चमचा फीरीनी के लिए, शराब के एक प्याले के लिए खुशामदें करते थे,नाकें रगड़ते थे, सिजदे करते थे। यहाँ तक कि सारी फौज पर एक नशा छा गया,बेदम होकर गिर पड़ी। मलका भी इटली के मुरब्बों के सामने दामन फैला-फैलाकर मिन्नतें करती थी और कहती थी कि सिर्फ एक लुकमा और एक प्याला दो और मेरा राज लो, पाट लो, मेरा सब कुछ ले लो लेकिन मुझे जी भरकर खा-पी लेने दो।यहाँ तक कि वह भी बेहोश होकर गिर पड़ी।

मलका की हालत अब बेहद दर्दनाक थी। उसकी सल्तनत का एक छोटा-सा हिस्सा दुश्मनों के हाथ से बचा हुआ था। उसे एक दम के लिए भी इस गुलामी से नजात न मिलती। कभी कर्ण सिंह के दरबार में हाजिर होती, कभी मिर्जा शमीम की खुशामद करती, इसके बगैर उसे चैन न आता। हाँ, जब कभी इस मुसाहिबी और जिल्लत से उसकी तबीयत थक जाती तो वह अकेले बैठकर घंटों रोती और चाहती कि जाकर शाह मसरूर को मना लाऊँ। उसे यकीन था कि उनके आते ही बागी काफूर हो जायेंगे पर एक ही क्षण में उसकी तबीयत बदल जाती। उसे अब किसी हालत पर चैन न आता था।

अभी तक दुलहवस खाँ की स्वामिभक्ति में फर्क न आया था। लेकिन जब उसने सल्तनत की यह कमजोरी देखी तो वह भी बगावत कर बैठा। उसकी आजमाई हुई फौज के मुकाबले में मलका की फौज क्या ठहरती, पहले ही हमले में कदम उखड़ गये। मलका खुद गिरफ्तार हो गयी। वुलहवस खाँ ने उसे एक तिलस्माती कैदखाने में बन्द कर दिया। सेवक से स्वामी बन बैठा।

यह कैदखाना इतना लम्बा-चौड़ा था कि कोई कैदी कितना ही भागने की कोशिश