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वफ़ा का खंजर
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अचानक बाहर से आवाज़ आयी-युद्ध! युद्ध ! सारा शहर इस बुलन्द नारे से गूंज उठा। दीवारों ने अपनी खामोश ज़बान से जवाब दिया-युद्ध ! युद्ध!

यह अदृष्ट से आनेवाली एक पुकार थी जिसने उस ठहराव में हरकत पैदा कर दी थी। अब ठहरी हुई चीजों में खलबली पैदा हो गयी। दरबारी गोया ग़फ़लत की नींद से चौंक पड़े। जैसे कोई भूली हुई बात याद आते ही उछल पड़े। युद्धमंत्री सैयद असकरी ने फ़रमाया-क्या अब भी लोगों को लड़ाई का एलान करने में हिचकिचाहट है? आम लोगों की ज़बान खुदा का हुक्म है और उसकी पुकार अभी आपके कानों में आयी, उसको पूरा करना हमारा फ़र्ज़ है। हमने आज इस लम्बी बैठक में यह साबित किया है कि हम ज़बान के धनी हैं, पर जबान तलवार है, ढाल नहीं। हमें इस वक्त ढाल की जरूरत है, आइए हम अपने सीनों को ढाल बना लें और साबित कर दें कि हममें अभी वह जौहर बाक़ी है, जिसने हमारे बुजुर्गों का नाम रौशन किया। क़ौमी ग़ैरत ज़िन्दगी की रूह है। वह नफे और नुकसान से ऊपर है। वह हुण्डी और रोकड़, वसूल और बाकी, तेज़ी और मन्दी की पाबन्दियों से आजाद है। सारी खानों की छिपी हुई दौलत, सारी दुनिया की मण्डियां, सारी दुनिया के उद्योगधन्धे उसके पासंग हैं। उसे बचाइए वर्ना आपका यह सारा निजाम तितर-वितर हो जायगा, शोराजा बिखर जायगा, आप मिट जायेंगे। पैसेवालों से हमारा सवाल है-क्या अब भी आपको जंग के एलान में हिचकिचाहट है?

बाहर से सैकड़ों आवाजें आयीं-जंग! जंग! एक सेठ साहब ने फ़रमाया-आप जंग के लिए तैयार हैं ?

असकरी- हमेशा से ज्यादा।

ख्वाजा साहब-आपको फ़तेह का यकीन है ?

असकरी-पूरा यकीन है।

दूर-पास से 'जंग जंग' को गरजती हुई आवाजों का तांता बंध गया कि जैसे हिमालय के किसी अथाह खड्ड से हथौड़ों की झनकार आ रही हो। शहर कांप उठा, ज़मीन थर्राने लगी, हथियार बँटने लगे। दरबारियों ने एकमत से लड़ाई का फैसला किया। गैरत जो कुछ न कर सकती थी, वह अवाम के नारे ने कर दिखाया।

आज से तीस साल पहले एक जबर्दस्त इन्कलाब ने जयगढ़ को हिला डाला था।