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वफ़ा का खंजर
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मंसूर सारी रात लहरों के साथ लड़ता-भिड़ता रहा, जैसे कोई नन्हीं-सी चिड़िया तूफ़ान में थपेड़े खा रही हो, कभी उनकी गोद में छिपा हुआ, कभी एक रेले में दस क़दम आगे, कभी एक धक्के में दस क़दम पीछे । जिन्दगी पानी की लिखावट की जिन्दा मिसाल ! जब वह नदी के पार हुआ तो एक बेजान लाश था, सिर्फ सांस बाकी थी और सांस के साथ मिलने की इच्छा।

इसके तीसरे दिन मंसूर विजयगढ़ जा पहुंचा। एक गोद में असकरी था और दूसरे हाथ में गरीबी का एक छोटा-सा बुकचा। वहां उसने अपना नाम मिर्जा जलाल बताया। हुलिया भी बदल लिया था, हट्टा-कट्टा सजीला जवान था, चेहरे पर शराफ़त और कुलीनता की कान्ति झलकती थी, नौकरी के लिए किसी और सिफारिश की जरूरत न थी। सिपाहियों में दाखिल हो गया और पांच ही साल में अपनी ख़िदमतों और भरोसे के बदौलत मन्दौर के सरहदी पहाड़ी किले का सूबेदार बना दिया गया।

लेकिन मिर्जा जलाल को वतन की याद हमेशा सताया करती। वह असकरी को गोद में ले लेता और कोट पर चढ़कर उसे जयगढ़ की वह मुसकराती हुई चरागाहें और मतवाले झरने और सुथरी बस्तियां दिखाता जिनके कंगूरे किले से नजर आते। उस वक्त वेअख्तियार उसके जिगर से एक सर्द आह निकल जाती और आंखें डबंडबा आतीं। वह असकरी को गले लगा लेता और कहता-बेटा, वह तुम्हारा देश है।वही तुम्हारा और तुम्हारे बुजुर्गों का घोंसला है। तुमसे हो सके तो उसके एक कोने में बैठे हुए अपनी उम्र खत्म कर देना, मगर कभी उसकी आन में बट्टा न लगाना ! कभी उससे दगा मत करना क्योंकि तुम उसी की मिट्टी और पानी से पैदा हुए हो और तुम्हारे बुजुर्गों की पाक रूहें अब भी वहां मंडला रही हैं। इस तरह बचपने से ही असकरी के दिल पर देश की सेवा और प्रेम अंकित हो गया था। वह जवान हुआ, तो जयगढ़ पर जान देता था। उसकी शान-शौकत पर निसार, उसके रौबदाव की माला जपनेवाला। उसकी बेहतरी को आगे बढ़ाने के लिए हर वक्त तैयार। उसके झण्डे को नयी अछूती धरती में गाड़ने का इच्छुक । बीस साल का सजीला जवान था, इरादा मजबूत, हौसले बलन्द, हिम्मत बड़ी, फौलादी जिस्म, आकर जयगढ़ की फ़ौज में दाखिल हो गया और इस वक्त जयगढ़ की फ़ौज का चमकता सूरज बना हुआ था।

जयगढ़ ने अल्टीमेटम दे दिया। अगर चौबीस घण्टों के अन्दर शीरी बाई जयगढ़ न पहुँची तो उसकी अगवानी के लिए जयगढ़ की फ़ौज रवाना होगी।