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गुप्त धन
 


किशवरकुशा दोयम ने बागियों को कुचलने के लिए अब को एक जबर्दस्त फौज रवाना की और मीर शुजा को उसका सिपहसालार बनाया जो लड़ाई के मैदान में अपने वक्त का इसफ़दियार था। सरदार नमकखोर ने यह खबर पायी तो हाथ-पांव फूल गये । मीर शुजा के मुकाबले में आना अपनी हार को बुलाना था। आखिरकार यह राय तय पायी कि इस जगह से आबादी का निशान मिटाकर हम लोग किलेबन्द हो जायें । उस वक्त नौजवान मसऊद ने उठकर बड़े पुरजोश लहजे में कहा—

'नहीं, हम किलेबन्द न होंगे, हम मैदान में रहेंगे और हाथोंहाथ दुश्मन का मुक़ाबला करेंगे। हमारे सीनो की हड्डियाँ ऐसी कमजोर नहीं हैं कि तीर-तुपुक के निशाने बर्दाश्त न कर सकें। किलेबन्द होना इस बात का एलान है कि हम आमने-सामने नहीं लड़ सकते । क्या आप लोग, जो शाह बामुराद के नामलेवा हूँ, मूल गये कि इसी मुल्क पर उसने अपने खानदान के तीन लाख सपूतों को फूल की तरह चढ़ा दिया? नहीं, हम हरगिज़ किलेबन्द न होंगे। हम दुश्मन के मुकाबिले में ताल ठोककर आयेंगे और अगर खुदा इंसाफ़ करनेवाला है तो जरूर हमारी तलवारें दुश्मनों से गले मिलेगी और हमारी बछियाँ उनके पहलू में जगह पायेंगी।'

सैकड़ों निगाहें मसऊद के पुरजोश चेहरे की तरफ़ उठ गयीं। सरदारों की त्योरियों पर बल पड़ गये और सिपाहियों के सीने जोश से धड़कने लगे। सरदार नमकखोर ने उसे गले से लगा लिया और बोले—मसऊद, तेरी हिम्मत और हौसले की दाद देता हूँ। तू हमारी फ़ौज की शान है। तेरी सलाह मर्दाना सलाह है। बेशक हम क़िलेबन्द न होंगे। हम दुश्मन के मुक़ाबिले में ताल ठोंककर आयेंगे और अपने प्यारे जन्नतनिशाँ के लिए अपना खून पानी की तरह बहायेंगे। तू हमारे लिए आगे-आगे चलनेवाली मशाल है और हम सब आज इसी रोशनी में कदम आगे बढ़ायेंगे।

मसऊद ने चुने हुए सिपाहियों का एक दस्ता तैयार किया और कुछ इस दम-खम और कुछ इस जोशखरोश से मोर शुजा पर टूटा कि उसकी सारी फौज में खलबली पड़ गयी। सरदार नमकखोर ने जब देखा कि शाही फौज के कदम डगमगा रहे हैं, तो अपनी पूरी ताकत से वादल और बिजली की तरह लपका और तेगों से तेग और बछियों से बछियाँ खड़कने लगीं। तीन घंटे तक बला का शोर मचा रहा, यहाँ तक कि शाही फ़ौज के क़दम उखड़ गये और वह सिपाही जिसकी तलवार मीर शुजा से गले मिली मसऊद था।