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गुप्त धन
 


मैजिन इन्हीं खयालों में डूबा हुआ था कि उसका दोस्त रफ़ेती जो उसके साथ निर्वासित किया गया था, इस कोठरी में दाखिल हुआ। उसके हाथ में एक बिस्कुट का टुकड़ा था। रफ्रेती उम्र में अपने दोस्त से दो-चार बरस छोटा था। भंगिमा से सज्जनता झलक रही थी। उसने मैजिनी का कंधा पकड़कर हिलाया और कहा—जोजेफ, यह लो, कुछ खा लो।

मैजिनी ने चौंककर सर उठाया और बिस्कुट देखकर बोला—यह कहाँ से लाये? तुम्हारे पास पैसे कहाँ थे?

रफ़ेती—पहले खा लो फिर यह बातें पूछना, तुमने कल शाम से कुछ नहीं खाया है।

मैजिनी—पहले यह बता दो, कहाँ से लाये। जेब में तम्बाकू का डिब्बा भी नज़र आता है। इतनी दौलत कहाँ हाथ लगी?

रफ़ेती—पूछकर क्या करोगे? वही अपना नया कोट जो मां ने भेजा था, गिरो रख आया हूँ।

मैजिनी ने एक ठंडी साँस ली, आँखों से आँसू टप-टप जमीन पर गिर पड़े। रोते हुए बोला—यह तुमने क्या हरकत की, क्रिसमस के दिन आते हैं, उस वक्त क्या पहनोगे ? क्या इटली के एक लखपती ब्यापारी का इकलौता बेटा क्रिसमस के दिन भी ऐसे ही फटे-पुराने कोट में बसर करेगा? ऐं?

रफ़ेती—क्यों, क्या उस वक्त तक कुछ आमदनी न होगी, हम तुम दोनों नये जोड़े बनवाएँगे और अपने प्यारे देश की आनेवाली आज़ादी के नाम पर खुशियाँ मनाएँगे।

मैजिनी—आमदनी की तो कोई सूरत नज़र नहीं आती। जो लेख मासिक पत्रिकाओं के लिए लिखे गये थे, वह वापस ही आ गये। घर से जो कुछ मिलता वह कब का खत्म हो चुका! अब और कौन-सा जरिया है?

रफ़ेती—अभी क्रिसमस को हफ्ता भर पड़ा है। अभी से उसकी क्या फ़िक्र करें। और अगर मान लो यही कोट पहना तो क्या? तुमने नहीं मेरी बीमारी में डाक्टर की फ़ीस के लिए मैग्डलीन की अंगूठी बेच डाली थी? मैं जल्दी ही यह बात उसे लिखनेवाला हूँ, देखना तुम्हें कैसा बनाती है ।

क्रिसमस का दिन है, लन्दन में चारों तरफ़ खुशियों की गर्म बाजारी है। छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सब अपने-अपने घर खुशियां मना रहे हैं और अपने अच्छे से अच्छे