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गुप्त धन
 


पाकर भी अगर मैं कुछ थोड़े से शारीरिक कष्टों का रोना रोऊँ तो मुझ जैसा अभागा आदमी दुनिया में कौन होगा।

मैंने सुना है, तुम्हारी सेहत रोज़-ब-रोज गिरती जाती है। मेरा जी बेअख्तियार चाहता है कि तुझे देखू। काश मैं आजाद होता, काश मेरा दिल इस काबिल होता कि तुझे भेंट चढ़ा सकता। मगर एक पजमुर्दा उदास दिल तेरे काबिल नहीं! मैग्डलीन, खुदा के वास्ते अपनी सेहत का खयाल रक्खो, मुझे शायद इससे ज्यादा और किसी बात की तकलीफ़ न होगी कि प्यारी मैग्डलीन तकलीफ में है और मेरे लिए! तेरा पाकीजा चेहरा इस वक्त निगाहों के सामने है। मेगा! देखो मुझसे नाराज न हो। खुदा की कसम मैं तुम्हारे काबिल नहीं हूँ। आज क्रिसमस का दिन हैं, तुम्हें क्या तोहफ़ा भेजूं। खुदा तुम पर हमेशा अपनी बेइन्तहा वरकतों का साया रक्खे। अपनी माँ को मेरी तरफ़ से सलाम कहना। तुम लोगों को देखने कीइच्छा है। देखें कब तक पूरी होती है।

तेरा जोजेफ

इस वाकये के बाद बहुत दिन गुज़र गये। जोजेफ़ मैज़िनी फिर इटली पहुंचा और रोम में पहली बार जनता के राज्य का एलान किया गया। तीन आदमी राज्य की व्यवस्था के लिए निर्वाचित किये गये। मैजिनी भी उनमें एक था । मगर थोड़े ही दिनों में फ्रांस को ज्यादतियों और पीडमाण्ट के बादशाह की दग़ा- बाजियों की बदौलत इस जनता के राज का खात्मा हो गया और उसके कर्मचारी और मंत्री अपनी जान लेकर भाग निकले। मैज़िनी अपने विश्वसनीय मित्रों की दगाबाजी और मौका-परस्ती पर पेचोताव खाता हुआ खस्ताहाल और परेशान रोम की गलियों की खाक छानता फिरता था। उसका यह सपना कि रोम को मैं जरूर एक दिन जनता के राज का केन्द्र बनाकर छोड्गा, पूरा होकर फिर तितर-बितर हो गया।

दोपहर का वक्त था, धूप से परीशान होकर वह एक पेड़ की छाया में जरा दम लेने के लिए ठहर गया कि सामने से एक लेडी आती हुई दिखाई दी। उसका चेहरापीला था, कपड़े बिलकुल सफ़ेद और सादा, उम्र तीस साल से ज्यादा है मैजिनी आत्म-विस्मृति की दशा में था कि यह स्त्री प्रेम से व्यग्र होकर उसके गले लिपट गयी। मैजिनी ने चौंककर देखा, बोला—प्यारी मैग्डलीन, तुम हो! यह कहते-