है। जो कुछ बचा है, वह ले जा। मैं जाकर पंचों से कह देता हूं।
धनिया अनाज की टोकरी घर में रखकर अपनी लड़कियों के साथ पोते के जन्मोत्सव में गला फाड़-फाड़कर सोहर गा रही थी, जिससे सारा गांव सुन ले। आज यह पहला मौका था। कि ऐसे शुभ अवसरों पर बिरादरी की कोई औरत न थी। सौर से झुनिया ने कहला भेजा था, सोहर गाने का काम नहीं है, लेकिन धनिया कब मानने लगी। अगर बिरादरी को उसकी परवा नहीं है, तो वह भी बिरादरी की परवा नहीं करती।
उसी वक्त होरी अपने घर को अस्सी रुपये पर झिंगुरीसिंह के हाथ गिरों रख रहा था। डांड़ के रुपये का इसके सिवा वह और कोई प्रबंध न कर सका था। बीस रुपये तो तेलहन, गेहूं और मटर से मिल गए। शेष के लिए घर लिखना पड़ गया। नोखेराम तो चाहते थे कि बैल बिकवा लिए जायं, लेकिन पटेश्वरी और दातादीन ने इसका विरोध किया। बैल बिक गए, तो होरी खेती कैसे करेगा? बिरादरी उसकी जायदाद से रुपये वसूल करे, पर ऐसा तो न करे कि वह गांव छोड़कर भाग जाय। इस तरह बैल बच गए।
होरी रेहननामा लिखकर कोई ग्यारह बजे रात घर आया, तो धनिया ने पूछा-इतनी रात तक वहां क्या करते रहे?
होरी ने जुलाहे का गुस्सा दाढ़ी पर उतारते हुए कहा-करता क्या रहा, इस लौंडे की करनी भरता रहा। अभागा आप तो चिंगारी छोड़कर भागा, आग मुझे बुझानी पड़ रही है। अस्सी रुपये में घर रेहन लिखना पड़ा। करता क्या। अब हुक्का खुल गया। बिरादरी ने अपराध क्षमा कर दिया।
धनिया ने होंठ चबाकर कहा-न हुक्का खुलता, तो हमारा क्या बिगड़ा जाता था? चार पांच महीने नहीं किसी का हुक्का पिया, तो क्या छोटे हो गए? मैं कहती हूं, तुम इतने भोंदू क्यों हो? मेरे सामने तो बड़े बुद्धिमान बनते हो, बाहर तुम्हारा मुंह क्यों बंद हो जाता है ? ले-दे के बाप-दादों की निसानी एक घर बच रहा था, आज तुमने उसका भी वारान्यारा का दिया। इसी तरह कल तीन-चार बीघे जमीन है, इसे भी लिख देना और तब गली-गली भीख मांगना। मैं पूछती हूं, तुम्हारे मुंह में जीभ न थी कि उन पंचों से पूछते, तुम कहां के बड़े धर्मात्मा हो, जो दूसरों पर डांड़ लगाते फिरते हो, तुम्हारा तो मुंह देखना भी पाप है।
होरी ने डांटा-चुप रह, बहुत बढ़-चढ़ न बोल बिरादरी के चक्कर में अभी पड़ी नहीं है, नहीं मुंह से बात न निकलती।
धनिया उत्तेजित हो गई-कौन-सा पाप किया है, जिसके लिए बिरादरी से डरें? किसी की चोरी की है, किसी का माल काटा है? मेहरिया रख लेना पाप नहीं है, हां, रख के छोड़ देना पाप है। आदमी का बहुत सीधा होना भी बुरा है। उसके सीधेपन का फल यही होता है कि कुत्ते भी मुंह चाटने लगते हैं। आज उधर तुम्हारी वाह-वाह हो रही होगी कि बिरादरी की कैसी मरजाद रख ली। मेरे भाग फूट गए थे कि तुम-जैसे मर्द से पाला पड़ा। कभी सुख की रोटी न मिली।
'मैं तेरे बाप के पांव पड़ने गया था? वही तुझे मेरे गले बांध गया था !'
'पत्थर पड़गया था उनकी अक्कल पर और उन्हें क्या कहूं? न जाने क्या देखकर लट्टू हो गए। ऐसे कोई बड़े सुंदर भी तो न थे तुम।'
विवाद विनोद के क्षेत्र में आ गया अस्सी रुपये गए, लाख रुपये का बालक तो मिल