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142 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


न हुई तो समस्या अत्यंत जटिल हो गई। सावन का महीना आ गया था और बगूले उठ रहे थे। कुओं का पानी भी सूख गया था और ऊख ताप से जली जा रही थी। नदी से थोड़ा-थोड़ा पानी मिलता था, मगर उसके पीछे आए दिन लाठियां निकलती थीं। यहां तक कि नदी ने भी जवाब दे दिया। जगह-जगह चोरियां होने लगीं, डाके पड़ने लगे। सारे प्रांत में हाहाकार मच गया। बारे कुशल हुई कि भादों में वर्षा हो गई और किसानों के प्राण हरे हुए। कितना उछाह था उस दिन। प्यासी पृथ्वी जैसे अघाती ही न थी और प्यासे किसान ऐसे उछल रहे थे, मानो पानी नहीं, अशर्फियां बरस रही हों। बटोर लो, जितना बटोरते बने। खेतों में जहां बगूले उठते थे, वहां हल चलने लगे। बालवृंद निकल-निकलकर तालाबों और पोखरों और गड़हियों का मुआयना कर रहे थे। ओहो। तालाब तो आधा भर गया, और वहां से गड़हिया की तरफ दौड़े।

मगर अब कितना ही पानी बरसे, ऊख तो विदा हो गई। एक-एक हाथ ही होके रह जायगी, मक्का और जुआर और कोदों से लगान थोड़े ही चुकेगा, महाजन का पेट थोड़े ही भरा जायगा। हां, गौओं के लिए चारा हो गया और आदमी जी गया।

जब माघ बीत गया और भोला के रुपये न मिले, तो एक दिन वह झल्लाया हुआ होरी के घर आ धमका और बोला—यही है तुम्हारा कौल? इसी मुंह से तुमने ऊख पेरकर मेरे रुपये देने का वादा किया था? अब तो ऊख पेर चुके। लाओ रुपये मेरे हाथ में!

होरी जब अपनी विपत्ति सुनाकर और सब तरह से चिरौरी करके हार गया और भोला द्वार से न हटा, तो उसने झुंझलाकर कहा-तो महतो, इस बखत तो मेरे पास रुपये नहीं हैं और न मुझे कहीं उधार ही मिल सकता है। मैं कहां से लाऊं? दाने-दाने की तंगी हो रही है। बिस्वास न हो, घर में आकर देख लो। जो कुछ मिले, उठा ले जाओ।

भोला ने निर्मम भाव से कहा मैं तुम्हारे घर में क्यों तलासी लेने जाऊं और न मुझे इससे मतलब है कि तुम्हारे पास रुपये हैं या नहीं। तुमने ऊख पेरकर रुपये देने को कहा था। ऊख पेर चुके। अब रुपये मेरे हवाले करो।

'तो फिर जो कहो, वह करूं?'

'मैं क्या कहूं?'

'मैं तुम्हीं पर छोड़ता हूं।'

'मैं तुम्हारे दोनों बैल खोल ले जाऊंगा।'

होरी ने उसकी ओर विस्मय-भरी आंखों से देखा, मानो अपने कानों पर विश्वास न आया हो। फिर हतबुद्धि-सा सिर झुकाकर रह गया। भोला क्या उसे भिखारी बनाकर छोड़ देना चाहते हैं? दोनों बैल चले गए, तब तो उसके दोनों हाथ ही कट जायंगे।

दीन स्वर में बोला दोनों बैल ले लोगे, तो मेरा सर्वनास हो जायगा। अगर तुम्हारा धरम यही कहता है, तो खोल ले जाओ।

'तुम्हारे बनने-बिगड़ने की मुझे परवा नहीं है। मुझे अपने रुपये चाहिए।'

'और जो मैं कह दूं, मैंने रुपये दे दिए?'

भोला सन्नाटे में आ गया। उसे अपने कानों पर विश्वास न आया। होरी इतनी बड़ी बेइमानी कर सकता है, यह संभव नहीं।

उग्र होकर बोला-अगर तुम हाथ में गंगाजलो लेकर कह दो कि मैंने रुपये दे दिए, तो