रक्त निकाला जाता है?
मिर्जा ने टोका-पुरुषों के जुल्म ने ही उनमें बगावत की यह स्पिरिट पैदा की है।
मेहता बोले-बेशक, पुरुषों ने अन्याय किया है, लेकिन उसका यह जवाब नहीं है। अन्याय को मिटाइए, लेकिन अपने को मिटाकर नहीं।
मालती बोली-नारियां इसलिए अधिकार चाहती हैं कि उनका सदुपयोग करें और पुरुषों को उनका दुरुपयोग करने से रोकें।
मेहता ने उत्तर दिया-संसार में सबसे बड़े अधिकार सेवा और त्याग से मिलते हैं और वह आपको मिले हुए हैं। उन अधिकारों के सामने वोट कोई चीज नहीं। मुझे खेद है, हमारी बहनें पश्चिम का आदर्श ले रही हैं, जहां नारी ने अपना पद खो दिया है और स्वामिनी से गिरकर विलास की वस्तु बन गई है। पश्चिम की स्त्री स्वछंद होना चाहती हैं, इसीलिए कि वह अधिक से अधिक विलास कर सकें। हमारी माताओं का आदर्श कभी विलास नहीं रहा। उन्होंने केवल सेवा के अधिकार से सदैव गृहस्थी का संचालन किया है। पश्चिम में जो चीजें अच्छी हैं, वह उनसे लीजिए। संस्कृति में सदैव आदान-प्रदान होता आया है, लेकिन अंधी नकल तो मानसिक दुर्बलता का ही लक्षण है। पश्चिम की स्त्री आज गृह-स्वामिनी नहीं रहना चाहती। भोग की विदग्ध लालसा ने उसे उच्छृंखल बना दिया है। वह अपनी लज्जा और गरिमा को, जो उसकी सबसे बड़े विभूति थी, चंचलता और आमोद-प्रमोद पर होम कर रही है। जब मैं वहां की शिक्षित बालिकाओं को अपने रूप का, या भरी हुई गोल बांहों या अपनी नग्नता का प्रदर्शन करते देखता हूं, तो मुझे उन पर दया आती है। उनकी लालसाओं ने उन्हें इतना पराभूत कर दिया है कि वे अपनी लज्जा की भी रक्षा नहीं कर सकतीं। नारी की इससे अधिक और क्या अधोगति हो सकती है?
रायसाहब ने तालियां बजाईं। हाल तालियों से गूंज उठा, जैसे पटाखों की लड़ियां छूट रही हों।
मिर्जा साहब ने संपादक जी से कहा-इसका जवाब तो आपके पास भी न होगा?
संपादकजी ने विरक्त मन से कहा—सारे व्याख्यान में इन्होंने यही एक बात सत्य कही है।
'तब तो आप भी मेहता के मुरीद हुए।'
'जी नहीं, अपने लोग किसी के मुरीद नहीं होते। मैं इसका जवाब ढूंढ निकालूंगा 'बिजली' में देखिएगा।
'इसके माने यह हैं कि आप हक की तलाश नहीं करते, सिर्फ अपने पक्ष के लिए लड़ना चाहते हैं।'
रायसाहब ने आड़े हाथों लिया-इसी पर आपको अपने सत्यप्रेम का अभिमान है?
संपादकजो अविचल रहे-वकील का काम अपने मुअक्किल का हित देखना है, सत्य या असत् का निराकरण नहीं।
'तो यों कहिए कि आप औरतों के वकील हैं?'
'मैं उन, सभी लोगों का वकील हूं, जो निर्बल हैं, निस्सहाय हैं, पीड़ित हैं।'
'बड़े बेहया हो यार!'
मेहताजी कह रहे थे-और यह पुरुषों का षड्यंत्र है। देवियों को ऊंचे शिखर से खींचकर