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पृष्ठ:गोदान.pdf/२३०

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230 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


अवलंब नहीं है। उसे वह दिन याद आए-और अभी दो साल भी तो नहीं हुए-जब यहां मातादीन उसके तलवे सहलाता था, जब उसने जनेऊ हाथ में लेकर कहा था—सिलिया, जब तक दम में दम है, तुझे ब्याहता की तरह रखूंगा, प्रेमातुर होकर हार में और बाग में और नदी के तट, पर उसके पीछे-पीछे पागलों की भांति फिरा करता था। और आज उसका यह निष्ठुर व्यवहार। मुट्ठी-भर अनाज के लिए उसका पानी उतार लिया।

उसने कोई जवाब न दिया॥ कंठ में नमक के एक डले का-सा अनुभव करती हुई आहत हृदय और शिथिल हाथों से फिर काम करने लगी।

उसी वक्त उसकी मां, बाप, दोनों भाई और कई अन्य चमारों ने न जाने किधर से आकर मातादीन को घेर लिया। सिलिया की मां ने आते ही उसके हाथ से अनाज की टोकरी छीनकर फेंक दी और गाली देकर बोली-रांड, जब तुझे मजूरी ही करनी थी, तो घर की मजूरी छोड़कर यहां क्या करने आई॥ जब बांभन के साथ रहती है, तो बांभन की तरह रह। सारी बिरादरी की नाक कटवाकर भी चमारिन ही बनना था, तो यहां क्या घी का लोंदा लेने आई थी। चुल्लू-भर पानी में डूब नहीं मरती।

झिंगुरीसिंह और दातादीन दोनों दौड़े और चमारों के बदले तेवर देखकर उन्हें शांत करने की चेष्टा करने लगे॥ झिंगुरीसिंह ने सिलिया के बाप से पूछा-क्या बात है चौधरी, किस बात का झगड़ा है?

सिलिया का बाप हरखू साठ साल का बूढ़ा था, काला, दुबला, सूखी मिर्च की तरह पिचका हुआ, पर उतना ही तीक्ष्ण॥ बोला-झगड़ा कुछ नहीं है ठाकुर, हम आज या तो मातादीन को चमार बनाके छोड़ेंगे, या उनका और अपना रकत एक कर देंगे। सिलिया कन्या जात है किसी-न-किसी के घर तो जायगी ही। इस पर हमें कुछ नहीं कहना है, मगर उसे जो कोई रखे, हमारा होकर रहे। तुम हमें बांभन नहीं बना सकते, मुदा हम तुम्हें चमार बना सकते हैं। हमें बांभन बना दो, हमारी सारी बिरादरी बनने को तैयार है। जब यह समरथ नहीं हैं, तो फिर तुम भी चमार बनो। हमारे साथ खाओ, पिओ, हमारे साथ उठो-बैठो। हमारी इज्जत लेते हो तो अपना धरम हमें दो।

दातादीन ने लाठी फटकारकर कहा-मुंह संभालकर बातें कर हरखुआ॥ तेरी बिटिया वह खड़ी है, ले जा जहां चाहे। हमने उसे बांध नहीं रक्खा है। काम करती थी, मजूरी लेती थी। यहां मजूरों की कमी नहीं है।

सिलिया की मां उंगली चमकाकर बोली-वाह-वाह पंडित। खूब नियाव करते हो? तुम्हारी लड़की किसी चमार के साथ निकल गई होती और तुम इसी तरह की बातें करते, तो देखती। हम चमार हैं, इसलिए हमारी कोई इज्जत ही नहीं। हम सिलिया को अकेले न ले जायंगे उसके साथ मातादीन को भी ले जायंगे, जिसने उसकी इज्जत बिगाड़ी है। तुम बड़े नेमी-धरमी हो। उसके साथ सोओगे, लेकिन उसके हाथ का पानी न पियोगे। वही चुडै़ल है कि यह सब सहती है। मैं तो ऐसे आदमी को माहुर दे देती।

हरखू ने अपने साथियों को ललकारा-सुन ली इन लोगों की बात कि नहीं। अब क्या खड़े मुंह ताकते हो।

इतना सुनना था कि दो चमारों ने लपककर मातादीन के हाथ पकड़ लिए, तीसरे ने झपटकर उसका जनेऊ तोड़ डाला और इसके पहले कि दातादीन और झिंगुरीसिंह अपनी-अपनी