खेलने वाले जीव थे, मगर नोहरी भोला के स्वभाव से परिचित हो चुकी थी।
भोला मिन्नत करके बोला-देख नोहरी, दिक मत कर। अब तो वहां बहुएं भी नहीं हैं। तेरे ही हाथ में सब कुछ रहेगा। यहां मजूरी करने से बिरादरी में कितनी बदनामी हो रही है, यह सोच।
नोहरी ने ठेंगा दिखाकर कहा-तुम्हें जाना है जाओ, मैं तुम्हें रोक तो नहीं रही हूं। तुम्हें बेटे की लातें प्यारी लगती होंगी, मुझे नहीं लगतीं। मैं अपनी मजदूरी में मगन हूं।
भोला को रहना पड़ा और कामता अपनी स्त्री की खुशामद करके उसे मना लाया। इधर नोहरी के विषय में कनबतियाँ होती रहीं-नोहरी ने आज गुलाबी साड़ी पहनी है। अब क्या पूछना है, चाहे रोज एक साड़ी पहने। सैयां भये कोतवाल अब डर काहे का। भोला की आंखें फूट गई हैं क्या?
सोभा बड़ा हंसोड़ था। सारे गांव का विदूषक, बल्कि नारद। हर एक बात की टोह लगाता रहता था। एक दिन नोहरी उसे घर में मिल गई। कुछ हंसी कर बैठा। नोहरी ने नोखेराम से जड़ दिया। सोभा की चौपाल में तलबी हुई और ऐसी डांट पड़ी कि उम्र-भर न भूलेगा।
एक दिन लाला पटेश्वरी प्रसाद की शामत आ गई। गमिर्यों के दिन थे। लाला बगीचे में बैठे आम तुड़वा रहे थे। नोहरी बनी-ठनी उधर से निकली। लाला ने पुकारा-नोहरा रानी, इधर आओ, थोड़े से आम लेती जाओ, बड़े मीठे हैं।
नोहरी को भ्रम हुआ, लाला मेरा उपहास कर रहे हैं। उसे अब घमंड होने लगा था। वह चाहती थी, लोग उसे जमींदारिन समझें और उसका सम्मान करें। घमंडी आदमी प्रायः शक्की हुआ करता है। और जब मन में चोर हो तो शक्कीपन और भी बढ़ जाता है। वह मेरी ओर देखकर क्यों हंसा? सब लोग मुझे देखकर जलते क्यों हैं? मैं किसी से कुछ मांगने नहीं जाती। कौन बड़ी सतवंती है। जरा मेरे सामने आए, तो देखूं। इतने दिनों में नोहरी गांव के गुप्त रहस्यों से परिचित हो चुकी थी। यही लाला कहारिन को रखे हुए हैं और मुझे हंसते हैं। इन्हें कोई कुछ नहीं कहता। बड़े आदमी हैं न। नोहरी गरीब है, जात की हेठी है, इसलिए सभी उसका उपहास करते हैं। और जैसा बाप है, वैसा ही बेटा। इन्हीं का रमेसरी तो सिलिया के पीछे पागल बना फिरता है। चमारियों पर तो गिद्ध की तरह टूटते हैं, उस पर दावा है कि हम ऊंचे हैं।
उसने वहीं खड़े होकर कहा-तुम दानी कब से हो गए लाला। पाओ तो दूसरों की थाली की रोटी उड़ा जाओ। आज बड़े आमवाले हुए हैं। मुझसे छेड़ की तो अच्छा न होगा, कहे देती
ओ हो! इस अहीरिन का इतना मिजाज। नोखेराम को क्या फांस लिया, समझती है सारी दुनिया पर उसका राज है। बोले-तू तो ऐसी तिनक रही है नोहरी, जैसे अब किसी को गांव में रहने न देगी। जरा जबान संभालकर बातें किया कर, इतनी जल्द अपने को न भूल जा।
'तो क्या तुम्हारे द्वार कभी भीख मांगने आई थी?'
'नोखेराम ने छांह न दी होती, तो भीख भी मांगती।'
नोहरी को लाल मिर्च-सा लगा। जो कुछ मुंह में आया बका-दाढ़ीजार, लम्पट, मुंह-झौंसा और जाने क्या-क्या कहा और उसी क्रोध में भरी हुई कोठरी में गई और अपने बरतन-भांड़े निकाल-निकालकर बाहर रखने लगी।
नोखेराम ने सुना तो घबराए हुए आए और पूछा-वह क्या कर रही है नोहरी, कपड़े-लत्ते क्यों निकाल रही है? किसी ने कुछ कहा है क्या?