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46 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


रूठी रहेगी, थाना-पुलिस की नौबत तो न आएगी। जाकर हीरा के द्वार पर सबसे दूर दीवार की आड़ में खड़ा हो गया। एक सेनापति की भांति मैदान में आने के पहले परिस्थिति को अच्छी तरह समझ लेना चाहता था। अगर अपनी जीत हो रही है, तो बोलने की कोई जरूरत नहीं, हार हो रही है, तो तुरंत कूद पड़ेगा। देखा तो वहां पचासों आदमी जमा हो गए हैं। पंडित दातादीन, लाला पटेश्वरी, दोनों ठाकुर, जो गांव के करता-धरता थे, सभी पहुंचे हुए हैं। धनिया का पल्ला हल्का हो रहा था।उसकी उग्रता जनमत को उसके विरुद्ध किए देती थी। वह रणनीति में कुशल न थी। क्रोध में ऐसी जली-कटी सुना रही थी कि लोगों की सहानुभूति उससे दूर होती जाती थी।

वह गरज रही थी-तू हमें देखकर क्यों जलता है? हमें देखकर क्यों तेरी छाती फटती है? पाल-पोसकर जवान कर दिया, यह उसका इनाम है? हमने न पाला होता तो आज कहीं भीख मांगते होते। रूख की छांह भी न मिलती।

होरी को ये शब्द जरूरत से ज्यादा कठोर जान पड़े। भाइयों का पालना-पोसना तो उसका धर्म था। उनके हिस्से की जायदाद तो उसके हाथ में थी। कैसे न पालता-पोसता? दुनिया में कहीं मुंह देखाने लायक रहता?

हीरा ने जवाब दिया-हम किसी का कुछ नहीं जानते। तेरे घर में कुत्तों की तरह एक टुकड़ खाते थे और दिनदिन भर काम करते थे। जाना ही नहीं कि लड़कपन और जवानी कैसी होती है। दिन-दिन भर सूखा गोबर बीना करते थे। उस पर भी तू बिना दस गाली दिए रोटी न देती थी। तेरी जैसी राच्छसिन के हाथ में पड़कर जिंदगी तलख हो गई।

धनिया और भी तेज हुई-जबान संभाल, नहीं जीभ खींच लूंगी। राच्छसिन तेरी औरत होगी। तू है किस फेर में मूंड़ी-काटे, टुकड़े-खोर, नमक-हराम।

दातादीन ने टोका-इतना कटु वचन क्यों कहती है धनिया? नारी का धरम है कि गम खाय। वह तो उजड्ड है, क्यों उसके मुंह लगती है?

लाला पटेश्वरी पटवारी ने उसका समर्थन किया-बात का जवाब बात है, गाली नहीं। तूने लड़कपन में उसे पाला-पोसा, लेकिन यह क्यों भूल जाती है कि उसकी जायदाद तेरे हाथ में थी?

धनिया ने समझा, सब-के-सब मिलकर मुझे नीचा दिखाना चाहते हैं। चौमुख लड़ाई लड़नेके लिए तैयार हो गई-अच्छा रहने दो लाला? मैं सबको पहचानती हूं। इस गांव में रहते बीस साल हो गए। एक-एक की नस-नस पहचानती हूं। मैं गाली दे रही हूं, वह फूल बरसा रहा है, क्यों?

दुलारी सहुआइन ने आग पर घी डाला-बाकी बड़ी गाल-दराज औरत है भाई । मरद के मुंह लगती है। होरी ही जैसा मरद है कि इसका निबाह होता है। दूसरा मरद होता तो एक दिन न पटती।

अगर हीरा इस समय जरा नर्म हो जाता तो उसकी जीत हो जाती, लेकिन ये गालियां सुनकर आपे से बाहर हो गया। औरों को अपने पक्ष में देखकर वह कुछ शेर हो रहा था। गला फाड़कर बोला-चली जा मेरे द्वार से नहीं जूतों से बात करूंगा। झोंटा पकड़कर उखाड़ लूंगा। गाली देती है डाइन। बेटे का घमंड हो गया है। खून....

पांसा पलट गया। होरी का खून खौल उठा। बारूद में जैसे चिंगारी पड़ गई हो। आगे