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64 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


लौटआए।

मिर्जा ने पूछा-अरे, क्या खाली हाथ?

रायसाहब हसे-काजी के घर चूहे भी सयाने।

मिर्जा ने कहा-हो बड़े खुशनसीब खन्ना, खुदा की कसम।

मेहता ने कहकहा मारा और जेब से सौ-सौ रुपये के पांच नोट निकाले।

मिर्जा ने लपककर उन्हें गले लगा लिया।

चारों तरफ से आवाजें आने लगीं कमाल है, मानता हूं उस्ताद,क्यों न हो, फिलासफर ही जो ठहरे ।

मिर्जा ने नोटों को आंखों से लगाकर कहा- भई मेहता, आज से मैं तुम्हारा शागिर्द हो गया। बताओ, क्या जादू मारा?

मेहता अकड़कर, लाल-लाल आंखों से ताकते हुए बोले-अजी, कुछ नहीं। ऐसा कौन-सा बड़ा काम था। जाकर पूछा,अंदर आऊं? बोलीं-आप हैं मेहताजी,आइए। मैंने अंदर जाकर कहा, वहां लोग ब्रिज खेल रहे हैं। मिस मालती पांच सौ रुपये हार गई हैं और अपनी अंगूठी बेच रही हैं। अंगूठी एक हजार से कम की नहीं है। आपने तो देखा है। बस वही। आपके पास रुपये हों, तो पांच सौ रुपये देकर एक हजार की चीज ले लीजिए।ऐसा मौका फिर न मिलेगा। मिस मालती ने इस वक्त रुपये न दिए, तो बेदाग निकल जायंगी। पीछे से कौन देता है, शायद इसीलिए उन्होंने अंगूठी निकाली है कि पांच सौ रुपये किसके पास धरे होंगे। मुस्कराई और चट अपने बटुवे से पांच नोट निकालकर दे दिए, और बोलीं-मैं बिना कुछ लिए घर से नहीं निकलती। न जाने कब क्या जरूरत पड़े।

खन्ना खिसियाकर बोले- जब हमारे प्रोफेसरों का यह हाल है, तो यूनिवर्सिटी का ईश्वर ही मालिक है।

खुर्शेद ने घाव पर नमक छिड़का-अरे, तो ऐसी कौन-सी बड़ी रकम है, जिसके लिए आपका दिल बैठा जाता है। खुदा झूठ न बुलवाए तो यह आपकी एक दिन की आमदनी है। समझ लीजिएगा, एक दिन बीमार पड़ गए, और जायगा भी तो मिस मालती ही के हाथ में। आपके दर्दे जिगर की दवा मिस मालती ही के पास तो है।

मालती ने ठोकर मारी-देखिए मिर्जाजी, तबेले में लतिआहुज अच्छी नहीं।

मिर्जा ने दुम हिलाई-कान पकड़ता हूं देवीजी ।

मिस्टर तंखा की तलाशी हुई। मुश्किल से दस रुपये निकले,मेहता की जेब से केवल अठन्नी निकली। कई सज्जनों ने एक-एक, दो-दो रुपये खुद दिए। हिसाब जोड़ गया, तो तीन सौ की कमी थी। यह कमी रायसाहब ने उदारता के साथ पूरी कर दी।

संपादकजी ने मेवे और फल खाए थे और जरा कमर सीधी कर रहे थे कि रायसाहब ने जाकर कहा-आपको मिस मालती याद कर रही हैं।

खुश होकर बोले-मिस मालती मुझे याद कर २ही हैं, धन्य-भाग | रायसाहब के साथ ही हाल में आ विराजे।

उधर नौकरों ने मेजें साफ कर दी थीं मालती ने आगे बढ़कर उनका स्वागत किया।

संपादकजी ने नम्रता दिखाई-बैठिए, तकल्लुफ न कीजिए। मैं इतना बड़ा आदमी नहीं हूं।