पृष्ठ:गोदान.pdf/७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
गोदान : 79
 

मेहता ने जैसे सचेत होकर कहा-तुम सच कहती हो मालती। मैं किसी रमणी को प्रसन्न नहीं रख सकता। मुझसे कोई स्त्री प्रेम का स्वांग नहीं कर सकती। उसके अंतस्तल तक पहुंच जाऊंगा। फिर मुझे उससे अरुचि हो जायगी।

मालती कांप उठी। इन शब्दों में कितना सत्य था।

उसने पूछा-अच्छा बताओ, तुम कैसे प्रेम से संतुष्ट होगे?

'बस यही कि जो मन में हो, वही मुख पर हो । मेरे लिए रंग-रूप और हाव-भाव और नाज-अंदाज का मूल्य उतना ही है, जितना होना चाहिए। मैं वह भोजन चाहता हूं, जिससे आत्मा की तृप्ति हो। उत्तेजक और शोषक पदार्थों की मुझे जरूरत नहीं।'

मालती ने होंठ सिकोड़कर ऊपर को सांस खींचते हुए कहा-तुमसे कोई पेश न पाएगा। एक ही घाघ हो। अच्छा बताओ, मेरे विषय में तुम्हारा क्या खयाल है?

मेहता ने नटखटपन से मुस्कराकर कहा-तुम सब कुछ कर सकती हो, बुद्धिमती हो, चतुर हो, प्रतिभावान हो, दयालु हो, चंचल हो, स्वाभिमानी हो, त्याग कर सकती हो, लेकिन प्रेम नहीं कर सकतीं।

मालती ने पैनी दृष्टि से ताककर कहा-झूठे हो तुम, बिल्कुल झूठे। मुझे तुम्हारा यह दावा निस्सार मालूम होता है कि तुम नारी-हृदय तक पहुंच जाते हो।

दोनों नाले के किनारे-किनारे चले जा रहे थे। बारह बज चुके थे, पर अब मालती को न विश्राम की इच्छा थी, न लौटने की। आज के संभाषण में उसे एक ऐसा आनंद आ रहा था, जो उसके लिए बिल्कुल नया था। उसने कितने ही विद्वानों और नेताओं को एक मुस्कान में, एक चितवन में, एक रसीले वाक्य में उल्लू बनाकर छोड़ दिया था। ऐसी बालू की दीवार पर वह जीवन का आधार नहीं रख सकती थी। आज उसे वह कठोर, ठोस, पत्थर-सी भूमि मिल गई थी, जो फावड़ों से चिंगारियां निकाल रही थी और उसकी कठोरता उसे उत्तरोत्तर मोह लेती थी।

धायं की आवाज हुई। एक लालसर नाले पर उड़ा जा रहा था। मेहता ने निशाना मारा। चिड़िया चोट खाकर भी कुछ दूर उड़ी, फिर बीच धार में गिर पड़ी और लहरों के साथ बहने लगी।

'अब?'

'अभी जाकर लाता हूं। जाती कहां है?'

यह कहने के साथ वह रेत में दौड़े और बंदूक किनारे पर रख गड़ाप से पानी में कूद पड़े और बहाव की ओर तैरने लगे, मगर आध मील तक पूरा जोर लगाने पर भी चिड़िया न पा सके। चिड़िया मरकर भी जैसे उड़ी जा रही थी?

सहसा उन्होंने देखा, एक युवती किनारे की एक झोंपड़ी से निकली, चिड़िया को बहते देखकर साड़ी को जांघों तक चढ़ाया और पानी में घुस पड़ी। एक क्षण में उसने चिड़िया पकड़ ली और मेहता को दिखाती हुई बोली-पानी से निकल जाओ बाबूजी, तुम्हारी चिड़िया यह है।

मेहता युवती की चपलता और साहस देखकर मुग्ध हो गए। तुरंत किनारे की ओर हाथ चलाए और दो मिनट में युवती के पास जा खड़े हुए।

युवती का रंग था तो काला और वह भी गहरा, कपड़े बहुत ही मैले और फूहड़, आभूषण के नाम पर केवल हाथों में दो-दो मोटी चूड़ियां, सिर के बाल उलझे अलग-अलग। मुख-मंडल