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96 : प्रेमचंद रचनावली-6
 

96 : प्रेमचंद रचनावली-6 मिर्जा ने हंसते हुए कहा-लेकिन भाईजान, मैं भी तो इतनी दूर उठाकर लाया ही था। वकील साहब ने खुशामद करनी शुरू की-मुझे तो आपको फर्माइश पूरी करनी थी। आपको तमाशा देखना था, वह आपने देख लिया। अब आपको अपना वादा पूरा करना होगा। 'आपने मुआहदा (कौल-करार,शत) कब पूरा किया?' 'कोशिश तो जान तोड़कर की।' 'इसकी सनद नहीं।' लकड़हारे ने फिर हिरन उठा लिया और भागा चला जा रहा था। वह दिखा देना चाहता था कि तुम लोगों ने कांख-कूखकर दस कदम इसे उठा लिया, तो यह न समझो कि पास हो गए। इस मैदान में मैं दुर्बल होने पर भी तुमसे आगे रहूंगा। हां, कागद तुम चाहे जितना काला करो और झूठे मुकदमे चाहे जितने बनाओ। एक नाला मिला, जिसमें बहुत थोड़ा पानी था। नाले के उस पार टीले पर एक छोटा- सा पांच-छ: घरों का पुरवा था और कई लड़के इमली के नीचे खेल रहे थे। लकड़हारे को देखते ही सबों ने दौड़कर उसका स्वागत किया और लगे पूछने-किसने मारा बापू? कैसे मारा, कहां मारा,कैसे गोली लगी,कहांलगी, इसी को क्यों लगी, और हिरनों को क्यों न लगी? लकड़हारा हूं-हां करता इमली के नीचे पहुंचा और हिरन को उतारकर पास की झोंपड़ी से दोनों महानुभावों के लिए खाट लेने दौड़ा। उसके चारों लड़कों और लड़कियों ने शिकार को अपने चार्ज में ले लिया और अन्य लड़कों को भगाने की चेष्टा करने लगे। __ सबसे छोटे बालक ने कहा-यह हमारा है। उसकी बड़ी बहन ने, जो चौदह-पंद्रह साल की थी, मेहमानों की ओर देखकर छोटे भाई को डांटा-चुप, नहीं सिपाही पकड़ ले जायगा। मिर्जा ने लडके को छेडा-तम्हारा नहीं. हमारा है। बालक ने हिलपर बैठकर अपना कब्जा सिद्ध कर दिया और बोला- बापू तो लाए हैं। बहन ने सिखाया--कह दे भैया, तुम्हारा है। इन बच्चों की मां बकरी के लिए पत्तियां तोड़रही थी। दो नए भले आदमियों को देखकर जरा-सा चूंघट निकाल लिया और शरमाई कि उसकी साड़ी कितनी मैली, कितनी फटी,कितनी उटंगी है। वह इस वेश में मेहमानों के सामने कैसे जाय? औरगए बिना काम नहीं चलता। पानी वानी देना है। ___अभी दोपहर होने में कुछ कसर थी, लेकिन मिर्जा साहब ने दोपहरी इसी गांव में काटने का निश्चय किया। गांव के आदमियों को जमा किया। शराब मंगवाई,शिकार पका,समीप के बाजार से घी और मैदा मंगाया और सारे गांव को भोज दिया। छोटे-बड़े स्त्री-पुरुष सबों ने दावत उड़ाई। मदों ने खूब शराब पी और मस्त होकर शाम तक गाते रहे और मिर्जाजी बालकों के साथ बालक, शराबियों के साथ शराबी, बूढ़ों के साथ बूढ़े, जवानों के साथ जवान बने हुए थे। इतनी ही देर में सारे गांव से उनका इतना घनिष्ठ परिचय हो गया था, मानो यहीं के निवासी हों। लड़के तो उनपर लदे पड़ते थे। कोई उनकी फुदनेदार टोपी सिर पर रखे लेता था, कोई उनकी राइफल कंधे पर रखकर अकड़ता हुआ चलता था, कोई उनकी कलाई की घड़ी खोलकर अपनी कलाई पर बांध लेता था। मिर्जा ने खदखब देशी शराब पी और झम-झूमकर जंगली आदमियों के साथ गाते रहे।