पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/१०४

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गोरख-बानी] गिरही 'कोग्यांन अमली को ध्यान । बूचाको कान बेस्या को मान । बैरागी अर माया स्यूं हाथ या पांचां को एको साथ ।। २४५ ॥ गिरही होय करि कथै ग्यांन, अमली होय करि धरै ध्यान । वैरागी होय करै आसा, नाथ कहै तीन्यो पासा पासा ॥ २४६ ॥ रांड मुवा जती, धाये भोजन सती गये धन त्यागी। नाथ कहै ये तीन्यौ अभागी ॥ २४७ ॥ पढि पढि पढि केता मुवा कथि कथि कथि कहा कीन्ह । बढि बढि बढि बहु घट गया पारब्रह्म नहीं चीन्ह ॥ २४८ ।। सति सति बोले गोरष राणा। तीनि जण का सङ्ग निवारो नकटा बूचा काणा ॥ २४६ ॥ कदे न सोभै सुन्दरी सनकादिक के माथि । जब तब कलंक लगाइसी काली हांडी हाथि ॥ २५० ॥ गृहस्थ का ज्ञान, व्यसनी का ध्यान, बूचा के कान, वेश्या का मान और वैरागी का माया में हाथ डालना (अर्थात् माया को चाहने वाले का वैराग) इन पाँचों का एक ही साथ है। अर्थात् इन पाँचों का अस्तित्व नहीं है। गृही को ज्ञान नहीं होता, व्यसनी ध्यान नहीं कर सकता, चूचे का कान नहीं होता, वेश्या का मान नहीं होता और विरक माया से सम्बन्ध नहीं जोड़ सकता या माया से सम्बन्ध रखने वाला विरक्त नहीं हो सकता ॥२४॥ पासा पासा, अच्छी तरह पाश में बंधे हुए हैं ॥२६॥ स्त्री के मर जाने पर जो यती (योगी) होता है, दौद कर लोगों के यहाँ भोजन पाने के अर्थ जो सती (साधु ) होता है और धन के नष्ट हो जाने पर जो त्यागी होता है, नाथ कहते हैं ये तीनों श्रमागे हैं ॥ २७ ॥ जो विकलांग होने के कारण जोगी ( या जोगिनी ) हो जाते हैं, हार्दिक वैराग्य के कारण नहीं उनका साथ त्याग देना चाहिए ॥ २४८ ॥ ७ यह सबदी वीजक के 'साखी' अंग में कबीर की मानी गई है। १. (ख) गीरही। २. (ख) को। ३. (ख) बुचा । ४. (ख) बेरगी। ५. (ख) स्युं । ६. (स) पाचा । ७. (ख) नहीं। ८. (ख) नोवारौ। ९. (ख) लगाई सी।