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पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/११९

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९२ [ गोरख-बानी अपै। श्रारण नै विषै कोइला, सहज, फूक दो नलियां । चंद सूर दोऊ समि"करि राष्या आपैं श्राप जु मिलिया।२। रती का काम मासे की चोरी, रती मैं मासा चोरै। मासा चोरि रहै मासे मैं१२, इहि बिधि गरथें जोरै१४।३। भरधे५ सोनां उरधै सोना, मध्ये सोनम् ७ सोनां१८ ॥ तीनि सुन्य की रहनी जा २०, ता घटि पाप न पुंनां । ४ । उनमनि डांडी२० मन तराजू, पवन कीया गदियांनां । आपै गोरपनाथ जोषण २२ वैठा, तब सोनां महज समांनां । ॥६॥ जांणाने जोसी जोओ ने विचारी, पहला पुरिप के नारी२४जी । टेक । वाइ नहीं तह घां यादल नाही, बिन थाभां यायै महप रचीया। तिहां श्राप पांवन हारी२५ जी।।। अर्घ श्रारण = अक्षय रूपी जंगल में । सहज "नन्नियां-इला पिंगला से मदनाग्नि को पकार । रती=गुजा या घुघुची, पोटी परतु । रती का काम- अपर, माया । मासा-अधिक, प्रहा। हमारे हाथ में स्थूल शरीर पाटो यस्तु है, इस में से महान् प्रारमतय को लेकर टसी में निवास करना पाहिए । इस प्रकार (भारम.) धन (गर) को जोरना चाहिए । धन गांठ (मि) में पंघा रहता है। इसलिए सपथा से 'प्रथि' का अर्थ धन होता है। 'प्रयि' में ही 'गरय' और 'ग' पनसा है। गदियांनां गयाय (मं०), एक गोत्र जो पः मारों के परापर होती थी। गवाणी मापकै परमिः-शाधर संहिना १, १,४१ योगपितामणि, १८३ ॥ ६॥ १. (प) । २. (१) कोपला। ३. (प) इंक दोय ननीया मिनीमा । १. () दो। ५. (क) माय । 5. (क., गयो। ७. (१) चौरे । ८. (५) मीन । ६. (१) मानी । १०. (5) नो । ११. (५) माया मैं । १२. ( पनि । १३ (प) मा । १४. (प) सी... । ११. (५) १६. (5.) गोन्म; () गनिम ! १७. (५) । १- (भा १:. (4)दनी । २.. (4) पुनि । २१. () दी। ५) 21. (१) मनि । १. (८) नाग ! २५. (दाग।