गोरख-बानी] बाप नहीं होती तियां बैठणडै रे, माता बाल कुंवारी जी। पीवनै पौढ्यौ माझी पालनै, तिहां हूँ ही ज हिडोलँन-हारी जी ॥२॥ ब्रह्मा विष्न नैं आदि महेस्वर, ये तीन्यूं मैं जाया। इन तिहुँवां नी मैं घर घरणी, द्वैकर मोरी माया जी ॥३॥ गंग जमुन मोरी पाटलड़ी रे, हंसा गवन तुलाई जी। धरणि पाथरणौं नै श्राभ पछेचड़ौ, तो भी सौड़ी न माई जी ॥४॥ षांडतड़ी मांझी जनम बदीती, चांवल सांवि न सारी जी। मछिंद्र प्रसादै जती गोरष वाल्या, ये तत जोश्रो बिचारी जी ॥१७॥ . हे विज्ञ ज्योतिषी ! देखो और विचारो कि पहले पुरुष हुआ कि स्त्री, परमेश्वर या माया । बाबा (ब्रह्म अथवा ईश्वर ) ने जहाँ न वायु है, न यादल वहाँ जो बिना खंभों का मंडप रचा है, वहाँ उत्पत्ति करनेवाली वही, माया हो है। जब बाप नहीं था तब भी वह बैठी ( उपस्थित या विद्यमान) थी । यह माता (माया) बाल कुँवारी है। इसने अपने स्वामी को पालने में पौढ़ाया और वहाँ हिडोला मुलानेवाली हुई। ( अर्थात् पति का लालन पालन किया) ब्रह्मा, विष्णु और आदि महेश्वर ये तीनों (माया कहती है कि ) मेरे पैदा किये हुए हैं और मैं ही इन तीनों के घर में गृहिणी ( परनी) भी हूँ । (इनके) दोनों हाथों में मेरी माया है। (ये जो काम करते हैं, सब मेरी माया से ।) इला, पिंगला मेरी चारपाई (खाटलड़ी) है और जीव या प्राण रजाई (सुलाई ) है। पृथ्वी (मिटी ), पत्थर, और पानी (आदि ) (अर्थात् सारी सृष्टि) मेरा पक्षपट ( पछयोदा) है। वह भी मेरे बिछाने की चादर (सोह) के लिए पूरी नहीं है। खाँडतही ( संभवतः प्रोखली) में (झुटते हुए) जन्म बीत गया फिर भी चावल सँवरा-सारा नहीं गया अर्थात् कर्मों के बन्धन में बँधा हुआ मनुष्य दुःखों से छुटकारा नहीं पा सका । (भूसी सहित बीजों से साफ चावल को अलग करने के लिए सूप से जो क्रिया की जाती है, उसको संबरना-सारना कहते हैं । इसमें सूप जल्दी जल्दी दाहिने-बायें हिलाया जाता है जिससे साफ चावत आगे आ जाता है।) मछंबरनाथ के प्रसाद से यती गोरख कहता है कि इस तत्व को विचार कर देखो ॥ ७ ॥ १. (घ) में यह पद नहीं है । (क) में 'जी' के स्थान पर 'यो। १५
पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/१२०
दिखावट