पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/१५१

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सकारण है ११८ [गोरख-बानी क कहै मैं जाडण मूवा', कपड़ा कहै मैं नागा। इद मृदंग बाजै, तहां पांगुल नाचन लागा । २ । दनाथ विहवलिया बाबा, मछिंद्रनाथ" पूता। द भद भेदीले जोगी, वदंत गोरप अवधूता । ३ ॥ २५ ॥ अवधू अहँठ परवत मंझार', बेलडी माड्यौ विस्तार । फूल बेली फन्न, वेनि अछे मोत्याहल१ ॥ टेक ।। वाह (परमारमा अथवा जिसने यात्म साक्षात्कार कर लिया है) सब कारणों । सय कारणों को कारणत्व उसी से प्राप्त हुभा है । स्वयं

लिए उन कारणों में कोई कारणत्व नहीं । लवण उसके सामने कहता है

अलोना है। अर्थात् उससे लोनापन माँगता है और कहता कि तुम्हें । स्वाद दे स. ऐसी सामयं मुझमें नहीं। घी कहता है, में रूखा हूँ। कहती है मैं प्यासी हूँ, (शोपण की शक्ति नुममें नहीं रह गयो । ) अन्न है मैं मूसा हूँ। अग्नि कहती है कि मैं जाते से मर रही हूँ । और कपड़ा है कि में नंगा है। जिन वस्तुओं का जो प्रारूपण तथा प्रभाव है, उनका के पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । इन पंक्तियों का भाव कुछ कुछ वही 1 गीता के प्रसिद्ध रोक 'ननं विंदति शवाणि' श्रादि का । ( यह अयस्या तय प्राप्त होती जय ) अनाहत रूप मृदम पजता है और पके ताल में सम मिला कर) पंगु (पारमा, जो इन्द्रियों से अपने को मित लगा है इसलिए अंगहीन है तथा इसलिए भी पंगु है कि साक्षाकार के काकारी धानन्द से टसको इन्द्रियों ये काम हो गई है ) नाचने लगा। विहल जोगी (पूर्ण प्रमानन्द प्राप्त ) सादिनाय जिमका दाया गुरु है, और घर का जो पुप्र-शिप है, पर गौरम्नाय धान ना मैंने अमेद नंग ) भेद (रहस्य ) को मंच (भेद) विया ॥२५॥ ६ मत ! साद वोन (हायपा (शरीर) में (मायास्प मंत्र कर गई। पाप फल फज गयी। (किंतु मना हो मी) मुहान १. (१) टमया। २. () नाद सबद मृदः । २. (घ) विदा 1. (या। ५. १५) मझौद ना। ६. मेटा : १७, (५) ... न . ...)टं। .. (प) मा । १०. (") है। मोगलार , . .मायाम नही है। T