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पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/१६१

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१२८ [गोरख-वानी गुर कीजै गहिना निगुरा न रहिला, गुर बिन' ग्यांन न पायला रे भाईला ॥ टेक ।। दुधैं धोया कोइला उजला न होइला, कागा कं पहुप५ माल हंसला न भैलाश अभाजै सीरोटली कागा ले जाइला', पूछौ म्हारा गुरू नै ० कहां वैसि पाइला'१२। उतर१२ दिस आविला१३, पछिम दिस जाइला१४, पूछौ म्हारा सत गुरु नै, तिहां बैसि पाइला'१।३। सम ध्यान में लगा रहना चाहिए अथवा शंका रहित समाधान अवस्था में रहना चाहिए और निरंतर राम में रमना चाहिए । गोरखनाथ वह. ज्ञान कहते. हैं जिससे ( स्वयं उन्हें ) परम-निधान ब्रह्म-पद) प्राप्त हुआ है । हे अहिल गुरु धारण करो, निगुरे न रहो । हे भाई बिना गुरु के ज्ञान नहीं प्राप्त होता । दृध से धोने पर भी कोयला उज्ज्वल नहीं होता। कौवे के गले में फूलों की माला पहनाने से वह हंस नहीं हो जाता। गहला=ग्रहित, जो व्याधि, भूताबाधा या मानसिक विकार से ग्रस्त हो, यहाँ पर मानसिक विकार से ग्रस्त इस लिए मूर्ख । तुलना, गढ़वाली भापा का 'गयेल = उपेक्षा, असाव-- धानी और उदासीनता की एक साथ भावना । कौवा (जीव) बे तोड़ी सी (संपूर्ण) रोटी (श्राध्यात्मिक परिपूर्णता) दे जाता है । स्वांतस्थ गुरु से पूछो कि वह उसे कहाँ बैठ कर खाता है । (अभाजै सी-अविभक्त सी)। वह उत्तर दिसा (ब्रह्मपद, ब्रह्मरंध्र) से आया है (ब्रह्म उसका मूल वा अधिष्ठान है) और पश्चिम दिशा (सुषुम्णा मार्ग से वह जायगा ( अर्थात् १. (घ) बिण । २. (क) प्रामियेरे । 'भाईला' नहीं है । ३. (घ) कोयला । ४. (घ) ऊजला । ५. (घ) कउनो के गलि पहौप । ६. (घ) थायला । ७. (घ), अाभा जैसी रोटली; (क) अभाजेसी ह्वीटली (?)। ८. (घ) कऊवा ले जाइला ९. (क) माझा या माह्या । १०. (घ) कू। ११. (घ) बैठि षायला । १२. (घ), पूरब । १३. (घ) अांविला । १४. (घ) डालिला ।