पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/१७५

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१४० [गोरख-बानी माती माती सपनी दसौं दिसिर धावै, गोरपनाथ गारड़ी पवन बेगि ल्यावै ।। आदिनाथ नाती मछिंद्र नाथ प्रता, सपणीं मारिलै गोरष अवधूता ।४।।४।। थान दे गोरीए गोरष बाला माई५ बिन प्याले प्याला । गिगांन ची डाल्हीला पालंपू गोरषबाला पौढिला ॥ टेक ॥ देव लोक ची" देव कन्या१२, मृत लोक ची नारी, पाताल लोक ची नाग कन्या१२, गोरषबाला भारी ।। माया मारिली भावसी3 तजीली, तजीला कुटंब बन्धू, सहंसर कवलापतहां गोरषवाला जहां मन मनसा सुर संधू१०१२। tho . गारुडी पवन को शीघ्र ले आता है जिसके द्वारा सर्प वश कर लिया जाता आदिनाथ के नाती-शिष्य और मछदरनाथ के पुत्र-शिष्य गोरख अवधूत ने सर्पिणी को मार लिया है । या गोरख अवधूत कहता है कि इस प्रकार तुम भी सर्पिणी को मार डालो ॥१५॥ हे गोरी ! गोरख बाल के लिए जगह छोड़ो, ( उसको स्थान दो।) उसने बिना प्याले का प्याला, (विना मदिरा की मदिरा पी रक्खी है।) ज्ञान की पालको डाली है या रक्खी है जिस पर गोरखनाथ लेटे हैं । देवलोक की अप्स- राओं, मृत्यु लोक की स्त्रियों और पाताल लोक की नाग कन्याओं के लिए गोरख चाल (को प्रमावित करना ) भारी काम है। उसने माया को मार दिया है, घर-बार छोड़ दिया है, कुटुंब और भाई-बंधु त्याग दिये हैं । सहस्र-दल कमल में गोरस्त्र का निवास है, जहाँ मन, इच्छा (मनसा ) और प्राण (सुर) की १. (घ) दतू दिस । २. (घ) ना । ३. (घ) मारी गोरषि । ४. (घ) घीन दे । ५. (घ) माय। ६. (घ) विनां यान । ७. (घ) प्याला जी । प्रत्येक तुक के अंत में 'नी'। ८. (क) डीलि लावैला । संभवतः 'डोली लावैला' । ६.(घ) पाल । १०. (घ) गोरपवाल पहुइलाजी । ११. (घ) ची या । १२. (घ) कन्यां । १३. माया रिली मनुसीया। १४. (घ) सहभदल । १५. (घ) कंवल । १६. (घ) बालू । १७. (घ) जिहां मन नहीं दूजा भावेजी