१७० [गोरख-बानी संजम चितश्री जुगत' अहार । न्यद्रा तजौ जीवन का काल । बाड़ी तंत मंत बैदंत । जंत्रं गुटिका धात पाषंड ॥४॥ जड़ी बूटी का नांव जिनि लेह । राज दुवार पाव जिनि देहु । थंभन मोहन बसिकरन छाड़ी औचाद। सृणौ हो जोगेसरौ जोगारम्भ की बाट ॥५॥ और दसा परहरी छतीस । सकल विधि ध्यावो जगदीस । बहु विधि नाटारम्भ निबारि । काम क्रोध अहंकारहि जारि ॥६॥ मैंण महा रस फिरौं जिनिारदेस । जटा भार बंधौ जिनि केस । रूष विरष बाड़ी'४जिनि करौ। कूवा निवांण षोदि जिनि मरौ ॥७॥ तंत मंत वैदंत-तंत्र, मंत्र और वैयक । जंत्र-यंत्र; गुटिका-गोजी (यटी); थंभन स्तम्मन; औचाट= उचाटन; धात-धातु भस्म (वैधक सम्बन्धी)॥४१ छत्तीस-क्षितीश, राजा नाटारन्म दिखावा, जो काम हृदय से नहीं किया जाता, जिसमें दिखावे के लिए अभिनय (नाट्य) मात्र किया जाता है। १. (घ) चितवौ जुगति । २. (घ) मंत्र गोटिका । ३. (घ) मति । ४. (घ) यंभण मोहण वसिकरण । ५. (घ) सकल अवचाट । ६. (घ) 'सुगौ हो नरपती जीवण भौ बाट ॥६|| (घ) में इसके अनन्तर इतना और है-- नेम सनान व्रत प्रहरी, नवली चाकी क्रमजिन करौ । भैरू मंत्र वीर वेताल नारसिंघ तम तजौ भुवाल ।७/ प्रारम्भ जोग का कहौ उचार।" ७. (घ) का विचार । इसके बाद (घ) में इतना अधिक है- पासा जुवा खेलौ जिन सारी | जत सत जोग तणां अधिकारी। ८. (घ) ध्यावौ । ९. (घ) वहौ । १०. (क) अहंकार हरि । (घ) में इसके आगे इतना अधिक है- वाद विवाद उपाधि निवारि । बंधौ शक्ति जोग विधि सार । ११. (घ) नैनं। ११. (प) जिन...मति । १३. (घ) में इसके बाद इतना और है--गिगन मूनी दूधाधारी। गुपती चक्र सबै निवारी। दीवी चक्र तजौ मांस प्रहार । ए तनी तुम जुगती विचार ||१०|| १४. (घ) रूप नृप। ।
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