पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२१८

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अभै मात्रा जोग . . " . ॐ अकल पंथ, अकलि का मारग, सत भोमि, सहज' आसन प्रांण, जोगी, पवन गुटिका', निज मुवन गुफा, , सञ्जम कोपीन, मरजादा मेपली, निहकेवुल जगौटा, जुगति, उडयांणी, साच मुद्रा, सील कथा, षिमाटोषी", जरना१२, अधारी, अंतरि गति 3 मोली, धीरज, डंड, बमेक फाहड़ी, तप चक्र, मूल कमंडल, मन उदिका५, महा अमृत भोजन, दया'६, रह१७ रासि, बिचार पुसतक, जिभ्या रसायन', सरवङ्गी कला, विद्या काल बचणी, नृपै नग्री, अकल वनपंड, निरास मढी, अतीत देवता, गिनांन दीपक, अकलप . . . जगौटा=योग पट्ट। जरना=योगानुभव की स्थिरता, उसका जीर्ण होना । उड्यांणी = उडीयान, (अ) के अनुसार उड्याणिका । वमेक-विवेक । उदिक= उदक । रहरासि= (अ) रहस्य विचार । अभै मात्रा जोग-(क) (घ) और (अ) के आधार पर । १. (क), (अ) में 'अकल पंय, अकलि का मारग, सति भामि सहज श्रासन नहीं । २. (घ) प्राननाथ । ३. (घ) गाटिका । ४. (क) श्रासन (अ) भी (क) के ही अनुकूल है। ५. (घ) सहज सञ्जम । ६. (घ) कोपीन । ७. (ध) मरजाद; (क) म्रजादा। ८. (घ) निहिकेवल जोगौटा । ९. (घ) उडांणी । १०. (घ) में 'मुद्रा' का उल्लेख 'झोली के बाद है । ११. () छिमा। १२. (घ) जरणां । १३. (घ) अतरगति । १४. (घ) धीरज । इसके पहले (घ) में 'अकलि पा. प्रासति डीबी, त्रिगुण ठीहा, द्वादस कपाली संतोष तिलक', अधिक है। सर्वागी में 'आसति डीवो' के स्थान पर 'सहज डीबी है' और 'सन्तोष तिलक' नहीं है। १६. (घ) में इससे पहिले 'कमल पात त्रिपति सिधि' अधिक है। १७. (घ) रहिरासि। १८. (क) जिह्वा । १६. (३) अबगी रसायणी । २०. (घ) में इसके बाद 'अगम पुर पाटण', अधिक है।