पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२५२

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२०६ - गोरख-बानी] सुरति गहौ संसै जिनि लागौ, पूंजी हांन न' होई। एक तत सूएता निपजै, टार या टरै न स्रोई ॥७॥ निहिचा है तौ नेरा निपजै, भया भरोसा नेरा। परचा है तौ ततषिन निपजै, नहीं'तर सहज न बेरा ॥८॥ जे लूट्या जिनि पबरि न पाई, कसि करि यंद्री डांडी। तन मन की कछु षबरि न पाई, सुरति विगोया रांडी ॥६॥ बिंद और भग बाघणि औरें, विन दातां जग पाया। 'प्राण पुरुष का मर्म न पाया, छोड़ि बिगते माया॥ १० ॥ , . , भारमा की विस्मृति में न पड़े रहो । प्रारमो हानि स्मृति को पकड़ो, संशय में न लगो। प्रारमा ऐसी पुंजी है, जिसकी कमी हानि नहीं होती, एक श्रात्मा- तत्त्व ही से इतना धन अर्थात् सन्तोष-धन उत्पच होता है कि हटाने से नहीं हटता, कभी नहीं होता ॥ ७॥ अध्यात्म में निश्चय रखने से तथा उसका विश्वास (आसरा ) रखने से वह धन जल्दी ही उत्पन्न हो जाता है। और प्रात्म-परिचय होने से तो यह तत्क्षण ही उत्पन्न हो जाता है। यदि इन में से कोई बात नहीं है, तो समझलो, कि तुम्हारा स्वाभाविक रूप से निपटारा हो गया; अर्थात उन्हें यह अक्षय धन नहीं प्राप्त हो सकता ॥८॥ जो माया के द्वारा लूटे जा रहे हैं और जिन्हें इस बात को खबर नहीं, ने कस कर इन्द्रियों को दंड देते हैं। उन्हें तन मन को कोई खबर नहीं। वे तो माया ( रांडी) के पीछे अपनी भाध्यात्मिकता को नष्ट कर देते हैं ॥४॥ बिन्दु और है, भग और । लोग समझते हैं कि कामुकता ही पिन्दु का साफल्य अथवा उसका पूर्णोपमोग या आनन्द है, किन्तु वस्तुतः यात यह नहीं है। क्योंकि बिन्दु का साफल्य और उसका वास्तविक उपभोग उसे अन्य गामी बना कर अचंचल बनाना है, जिससे वह ब्रम्हानन्द की प्राप्ति में सहायक १. (प) में 'वांनन' पाठ है। (अ) में इसका अनुवाद 'हानिर्न' किया गया है। यदि (घ) को ही ठीक मानें तो सम्भवतः एक 'ना व्यर्थ है और पाठ 'ज्वा न' मानना पड़ेगा और अर्थ होगा, जुआ नहीं होता, पूजी हारी नहीं जा सकती। .