२३० [गोरख-बानी द०-अवधू जुगती सोई जो जुगि जुगि ताला, जुगति सोई जो विषै निराला। योगी सोई मन भ्रम न रहै, गोरष पूछे दतातृय कहै ।।२६।। गो०-स्वामी कौंण सि भरम कौंण स्य धरम, कौंण सि निसचल कौंण अधरम । अगम ग्यांन का कहियै भेव, गोरष कहै सुणौ दत देव ॥२७॥ द०-अवधूभ्रम सोई जिहि ब्यापै संसा,धरम सोई दरसण आदेसा। निसचल सोई जो ल्यौ स्यू रहै, अधरम सोई जो मिथ्या कहै॥२८ गो-स्वामी कौंण सि मिथ्या कौंण सि साच, कौंण सि षरा कौण सिकाच । कौंण सि कहै सबद का भेव, गोरष कहै सुणौ दत देव ॥२६॥ द०-अवधू माया मिथ्या ब्रह्म सु साचा, सबद सुषरा प्यंड को काचा। सबद विचारी जहाँ मन रहै, गोरष पूछे दतात्य कहै ॥३०॥ गो०--स्वामी कौण सि काया कौंण सि माया, कौंन सि भ्रम जग धंधै लाया। अपार धंद का कहै भेव, गोरष कहै सुणौ दतदेव ॥३१॥ द०-अवधू मन कलपत लागो माया, करम आचरै वहां व काया। ध्यान गिना जगु धंद अपार, सांभलि गोरष कहूँ विचार ॥३२॥ गो-स्वामी कौन सि ध्यान कौन सि ग्यांन, कौन सि मन कौन सि आसांन । ग्यांन ध्यान का कहियै भेव, गोरष कहै सुौ दत देव ॥३३॥ द०-अवधू ध्यान सो ब्रह्म सू रहै, ग्यांन सोई जो सब गमि कहै। मन सोइजहां मनहि समांन, आपण जाणो सोई प्रासांन ॥३४ गो०-स्वामी कौन सि मानें कौन सि जाने, ससिहर सुर कौन समि ठाने । प्रकास अगोचर कहियै भेव, गोरप कहै सुणी दतदेव ॥३५॥
पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२७५
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