पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२७६

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गोरख-बानी] द०-अवधू जानै सोइ परचे जग, नांथ न जाणे सोइ विषियारत। ससिहर सूर अगोचर बासा । सांभलि गोरष कहू प्रकासा ॥३६ गो०-कौन अगोचर कौन प्रकास, कौन घरि पेलै निरास । कौन सिधा का कहियै भेव, गोरष कहै सुणो दत देव ॥३७॥ द०-अवधू ब्रह्म अगोचर मन प्रकास, परचै घरि घले निरास । परम ज्योति यहां सिध गहि रहै, गोरष पूछे दत्तात्य कह।।३८॥ गो०-स्वामी कौणसि परचे कौण प्रतीत, कैसे थिर चंचल चीत । मन पवन का कहियै भेव, गोरष कहै सुणौ दत देव ॥३६॥ द०-अवधू गुर परिचय मन प्रतीत, निसचल अस्थीर चंचल चीत । पवन थिरता मन थिर रहै, गोरष पूछे दत्तात्य कहै ॥४०॥ गो-कौनसि निसचल ले बधे बंद, जुरामरण अजरावर कंद । गगन पद का कहियै भेव, गोरष कहे सुणौ दतदेव ॥४॥ द०-अवधू निसचल सो जो न पड़े काया, तूगुण रहत सी गगन समाया। सहज पद परम नृवान, सांलि गोरष ए परवान ॥४२॥ गो०-स्वामों कौंन सकति कौंन सीव, कौंन तीनि भवन का जीव । कौंण सि आसा पुरवई भेव, गोरष कहै सुणौ दतदेव ॥४३।। द०-अवधू सकति सोइ जो सबहीं सोथै, सीव सोइ जो सबको पोषै। जीव इक तीनि मुवन जगनाथ, सोइ सङ्ग जो पूरइ आस||४४॥ गोस्वामी कौन कौन ले कथिवा ग्यांन, कौण तत्त ले परिवा ध्यान। कौंण समाधी तुम्हें लागे भेव, गोरप कहै सुणौ दतदेव ॥४॥ दु०-अवधू आत्मा चिनंति' कहा कथिवा ग्यांन, तत्व विचारिवा कहा धरिवा ध्यान । दत कहै हम सहज समान, सांलि गोरष पद निरबांन ॥४॥ , १. (घ) चिन्हति ।